मेवाड़ में कृष्ण
रोचक तथ्य
उदयपुर के जगदीश मंदिर के द्वार पर किंवदंती लिखी है कि भगवान जगन्नाथ ने राणा से कहा, ''मेरा मंदिर बनवाओ, मीरा को दिया वचन निभाने मुझे पुरी से मेवाड़ आना है!"
तुम आईं थी सखी
साँवरे समुद्र में समाने, मेरी द्वारिका तक
मैं तो वहाँ नहीं था,
उदय की खोज में
चला गया था,
अस्ताचल के पश्चिम से पूरब की ओर
लौटना चाहता हूँ
अपनी तड़प तक अपने सत्व तक
मैं आऊँगा अब अनछुए छूट गए पलों को पाने
मैं आऊँगा मेवाड़ तुम्हें दिया वचन निभाने
आ सकूँ इसी पल या प्रतीक्षा के बाद,
प्रलय-पल
आना है मुझे मेरी प्रिया तेरे नगर, तेरे प्रांतर, तेरे आँचल
आना है तेरे गीतों का छंद छू पाने
ये अक्षौहिणियाँ, यह द्वारिका भुलाने
तुझे दिया वचन निभाने
तेरी कविता में महकती ब्रज-रज में बस जाने
तेरे गीतों के वृंदावन में मुरली बजाने
उस कोलाहल, उस महारास में
नाचने और नचवाने
अक्रूर रथ में चढ़ते पल दिया था
जो स्वयं को वह वचन निभाने
मैं ही हूँ कालपुरुष, सखि
ब्रह्मांडों का संहारकर्ता
मैं ही हूँ कालपुरुष, मीरा
कालप्रवाह का नियंता
मुझी से होकर गुज़रता है
सारा जीवन-अजीवन, समय-असमय
प्रत्येक प्रवाह
मैं ही हूँ अनंत, अनारंभ, अद्वितीय...
सबसे ज़्यादा एकाकी, निपट अकेला
इस अकेले को आना है सखि
मेड़ता की गलियों में
खिलखिलाने
आऊँगा गुइयाँ,
मीरा
परात्पर, परंतप, पुरुषोत्तम को पीछे छोड़
पुन: अबोध बालक बन जाने
लुका-छिपी में इस अंतिम बार तुझसे हार जाने
स्वयं को दिया, गुइयाँ को दिया
वचन निभाने...
- रचनाकार : पुरुषोत्तम अग्रवाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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