गाय की तरह
वह गाय की तरह जी
और गाय की तरह मर गई
गाय की तरह खूँटे से बँधी रही
गाय की तरह गर्भवती हुई
गाय की तरह रँभाती रही
गाय की तरह दूध देती रही
गाय की तरह भटकने के लिए छोड़ दिए जाने पर सड़क के बीचो-बीच बैठी रही
शाम को लौट कर फिर खूँटे पर आ गई
गाय की तरह उसे पता नहीं चला
कि वह पूजनीय है
कि उसे जान से मारना जघन्य अपराध है
गाय की तरह उसे पता नहीं चला
कि उसे प्लास्टिक नहीं खाना है
गाय की तरह उसने कभी नहीं कहा कि उसे बुख़ार है
गाय की तरह उसकी आँखों की कोरें कभी-कभी भीगी दिखी
गाय की तरह उसे मरने का कोई पछतावा नहीं हुआ
गाय की तरह उसे पता ही नहीं चला था कि वह जी रही थी।
- रचनाकार : विष्णु नागर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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