अपने साथियों के नाम

apne sathiyon ke nam

नीलाभ

नीलाभ

अपने साथियों के नाम

नीलाभ

और अधिकनीलाभ

     

    एक  

    अनिश्चित तकलीफ़ में बदलती हुई प्रतीक्षा
    आग नस-नस में 
    ग़ुस्से के ज़हर की तरह समाती हुई
    एक नफ़रत जैसे चेहरे को झुलसाती हुई
    बातें, फिज़ूल बातें, 
    लपटों की तरह दिमाग़ में सुलगती हुई
    तुम्हें किसी भी निर्णय के लिए मजबूर कर सकती हैं

    सिर्फ़ एक एहसास है
    तुम्हारे अंदर
    आकाश की ऊँचाई तक चढ़ता चला जाता हुआ
    जो तुम्हें ज़िंदा रखता है
    नसों में फैलते हुए ज़हर के बावजूद

    वादे नहीं। क़समें नहीं
    ऊब-भरी अर्थहीन रस्में नहीं—

    इस बार कुछ और होना चाहिए
    एक बार फिर टूटने से पहले

    दो

    लिखो :
    बहुत-से लोगों का दुख
    जो उन्हें ही नहीं, तुम्हें भी सालता है

    लिखो :
    जीवन की कहानी
    जैसे कि तुम उसे बाहर देखते हो
    जिसमें तुम ख़ुद भी शरीक हो 

    लिखो :
    अपना ही नाम साफ़-साफ़
    मिटने से पहले एक बार तेज़ी से चमकता हुआ
    और अपने साथियों के नाम
    जो तुम्हारे साथ-साथ रहे हैं सर्द बौछार में 
    जब खाल को चीरती हुई हवा और बारिश में
    साथ रहने की सच्चाई
    सूखे कपड़ों और आरामदेह घरों की
    तस्वीर से बड़ी थी

    लिखो :
    लोगों के एहसान बड़े हर्फ़ों में
    ए ह सा न
    जो तुम्हें याद दिलाते हैं
    कि तुम आदमी हो
    और आदमियों के बीच रहते हो
    और इस दुनिया में शक्तिशाली लोग भी
    अपने दिमाग़ के पथरीले गणित को
    एहसास की ताक़त से भाग देना जानते हैं—
    क्योंकि एहसान-फ़रामोशी 
    और एक कृतघ्न ख़ामोशी
    सबसे बड़ा ख़तरा है
    ज़िंदा आदमी के लिए

    बनाओ :
    अपने ग़ुस्से की सही तस्वीर
    हाथ फेंकते, थूक उड़ाते, बेहाल ग़ुस्से की नहीं
    दिमाग़ में पारा और
    दिल में सहने की ताक़त भर देने वाले
    ग़ुस्से की तस्वीर
    क्योंकि ग़ुस्सा तुम्हें ज़िंदा रखता है
    अपने जायज़ अधिकार हासिल करने के लिए

    जो छीनते हैं, दूसरों के अधिकार
    वे तुम्हारे अधिकारों को बेच देते हैं
    अपने भविष्य के बदले में
    वही हैं तुम्हारी नफ़रत के सही हक़दार

    लिखो :
    ज़हर 
    बार-बार
    और पहचानो :
    वह कहाँ है और कैसे फैलता है—
    धीरे-धीरे 
    इस पेड़ की शाख़ों से जड़ों की तरफ़

    क्योंकि तुम्हें रहना है इसी माहौल में
    इसी माहौल में जायज़ हक़ों के लिए लड़ना है
    किसी दूसरी दुनिया में जा कर नहीं करनी है
    अपनी लड़ाई

    न अपने देश के ख़िलाफ़ होकर
    दूर कहीं, छोटी-छोटी ख़ुशियों के
    बहुत-जल्द-ख़त्म-होने-वाले संसार में भाग कर,
    सुविधाओं के साफ़ और सूने 
    आसमान के नीचे मरना है

    तीन

    शरई मूँछों और दाढ़ी के पीछे
    तिलक और चोटी और ब्रह्म-ज्ञान के नीचे
    चेहरा तो वही एक है :

    बनाओ यह चेहरा और पहचानो :
    नफ़रत और स्वार्थ और शातिर चालाकी से भरा हुआ
    यह चेहरा कहाँ-कहाँ तुम्हारी नज़रों के ख़िलाफ़ है

    बड़ी-बड़ी इमारतों के अंदर,
    कारख़ानों के धुँए के पीछे छिपे
    साफ़ और शानदार बँगलों में,
    शराब के चमकते हुए गिलासों के पार
    कारीगरों की दस्तकारी का सौदा करता हुआ
    यह चेहरा तुम्हें अक्सर
    मासूम और भोला और निरीह दिखाई देगा

    अपने साथियों के नाम :
    लिखो :
    अपने तमाम साथियों के नाम
    एक खुला पत्र
    और मत समझो अपनी ख़ुद-पसंदी के नशे में
    उसे कविता
    कि अपने ग़ुस्से और तकलीफ़ को तुमने
    कितनी चौकस भाषा में पिरो दिया है 

    अपने लिए 
    सिर्फ़ अपने लिए लिखो :
    एक कविता
    जिसकी देह से ज़िंदगी की गंध आती हो,
    जो तुम्हारी नसों को ताज़ा-दम कर जाती हो
    और उसे पढ़ो बार-बार अपने ही आप
    फिर उस पहले आदमी को दे दो मुफ़्त में
    जो उसे पसंद करे
    जो उसे कटघरों में न बंद करे

    क्योंकि कविता नहीं दे सकती तुम्हें
    घर या भर-पेट खाना या बच्चों के लिए गर्म कपड़े
    वह सिर्फ़ तुम्हारी नसों में जज़्ब होकर
    तुम्हारे एहसास को आकाश की ऊँचाई,
    धरती की ताक़त और साथियों की सदाक़त
    महसूस करा सकती है

    सबसे आख़िर में लिखो
    अपने सपनों का क़िस्सा
    धुँधलाई आँखों से देखे गए नहीं,
    एहसास के मज़बूत और कभी न ख़त्म होने वाले
    रेशों से बुने गए सपनों का क़िस्सा

    जिन्हें पाने के लिए तुम
    और तुम्हारे जैसे हज़ारों लोग
    जो इस धरती का नमक हैं
    अपनी आग लगातार
    दिमाग़ की हरियाली में बोते हैं
    और अपना भविष्य
    सीधे तने हुए माथों पर नहीं
    झुके हुए कंधों पर ढोते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल जमा-1 (पृष्ठ 131)
    • रचनाकार : नीलाभ
    • प्रकाशन : शब्द प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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