डार्करूम

Darkrum

निर्मला गर्ग

निर्मला गर्ग

डार्करूम

निर्मला गर्ग

और अधिकनिर्मला गर्ग

    लड़की फ़ोटोग्राफ़र बनना चाहती है

    रोटी गोल नहीं बिलती उससे

    बन जाता है कोई कोई नक़्शा

    कर आती है सैर वह अनदेखे द्वीपों की

    द्वीपों के जिस्म पर उगे घास के मैदानों की

    ग़िलाफ़ों पर स्वागतम काढ़ना उसे नहीं आता

    वह सीखती भी नहीं

    तकियों पर सादे ग़िलाफ़ चढ़ा उठा लेती है

    किताब बताई गई है जिसमें तरकीब

    रोशनी से लिखने की

    उसके सपनों में अँट नहीं पाती

    सुगंधियों लिपिस्टिकों से सजी प्रसाधन मेज़

    झागदार टाइलों वाला भव्य स्नानघर भी

    दरवाज़े से ही झाँक कर लौट आता है

    मौजूद है वहाँ तो पहले से अपने साजो-समान के साथ

    एक छोटा-सा डार्करूम

    तैयार करेगी जहाँ वह अपनी खींची तस्वीरों के प्रिंट

    तस्वीरें जिनमें कार और बँगले में ख़त्म होतीं

    यात्राएँ हैं

    तस्वीरें जिनमें भय चेहरों पर रोजनामचे की तरह लिखा है

    तस्वीरें जिनमें घोंसले ख़ाली और दीवारें

    बिना कैलेंडर की हैं

    लड़की किसी निर्णय पर पहुँचना चाहती है

    फैलाएगी सब ब्लू प्रिंट की तरह।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कबाड़ी का तराज़ू (पृष्ठ 67)
    • रचनाकार : निर्मला गर्ग
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2000

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