निर्मल वर्मा की किताबें
जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है
किताबें मेरे पास कम हो रही हैं
बार-बार पढ़ने वाली कुछ बचेंगी जो
बहुत बाद में मुझे अकेला करेंगी अपने साथ
इतना अकेला
कि जितनी अकेली यह सृष्टि है
शून्य में फैलती हुई
निर्मल वर्मा की किताबें
बहुत पास रखी हैं
उनकी जितनी किताबें उनके अलावा
मेरे अनुभव में
उनकी यह कौन-सी किताब है!
रात में बहुत ऊपर जाता अमूर्त!!
किसी कोण पर चाँदनी में झलकता भ्रम!!!
मेरे अनुभव में
उनकी कौन-सी किताब
उनकी किताबों के पास अनुपस्थित ख़ाली जगह में
बहुत पास और बहुत दूर होने से
इतनी धुँधली
कि अनंत में विलुप्त कहीं मौन प्रार्थना!
जिसके शब्द आत्मा से अगम्य
ईश्वर से परिपूर्ण!
मेरे बेटी जब भी घर आती है
निर्मल वर्मा की किताबें माँगती है
उनकी सारी किताबें उसे दे चुका हूँ
पर उसे
हर बार शक है किताब कोई मैं उनकी
छिपाए हूँ
उसे यह भी शक है कि मैं एक किताब पढ़ चुका हूँ
उसका यह दूसरा शक मुझे कभी
सच लगता है :
जन्म-जन्मांतरों की भीड़-सा कुछ याद आता है
विस्मृति में दूर तक
खिंचती चली जाती है रेख
उमड़ती व्यथा की मुस्कान अँधेरे पर फैल जाती है
सन्नाटे की आवाज़ आती है
एक दिन मेरी बेटी जब
निर्मल वर्मा की किताबों के पास अकेली बचेगी
तो नहीं है उनकी जो किताब
उसकी ख़ाली जगह में लेगी साँस
याद आएगा उसे अव्यक्त
छुएगी उँगलियों से शून्य
अँधेरे की पीठ से टिकी एकटक देखेगी तारे
मेरे पास आकर चुपचाप बैठ जाएगी
माँगेगी नहीं वह किताब
जो मैं उसे कभी दे नहीं पाया
अँधेरे में
रात का लिहाफ़ ओढ़े
नींद के पास लेटा हूँ
निर्मल वर्मा की किताबों पर
ठहरा है—
धूप का एक टुकड़ा।
- पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 69)
- रचनाकार : नवीन सागर
- प्रकाशन : कवि प्रकाशन
- संस्करण : 2001
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