भालू की नाक
शहर में भालू आया
आलू लाया
पहाड़ से
शहरियों के लिए
औरतों के बदले में
आलू के बदले
औरतें देना आसान है
भालू को शहरियों के लिए।
नाच दिखाया उसने
गश्त लगाई
गलियों में झाँका खिड़कियों के भीतर
पालनों में।
अब पसंद है उसे
नवजात शिशु
आलू के बदले
भालू को
अब दे रहे हैं नवजात शिशु शहरिए
आलू के बदले।
सूँघने की शक्ति हो गई है तेज़ भालू की
नाक की
नाक को ऊपर घूमता है
सारे शहर में
भालू।
भालू आया-भाला आया
आलू लाया-आलू लाया
(हर्ष चारों ओर घनघोर छाया)
नवजात शिशु सुनता है यह गाना
माना-उसके लिए यह बेमानी है
जब भी कोई नवजात शिशु आता है
नाक से ख़बर पहुँचती है भालू आता है।
नाक हो गई है अत्यधिक संवेदनशील
भालू की
नाक भालू हो गई है
धड़ाक!
एक हल्का
कोमल प्यारा छोटा-सा
मगर कस कर मुक्का मारता है
नवजात शिशु भालू की नाक पर।
पीड़ा से तिलमिलाता है भालू
आलू लेकर वापस भागा
वापस पहाड़ पर।
शहर सुनसान है
ख़ाली मकान है
केवल एक नवजात शिशु
खोल रहा है
अपनी मुट्ठी!
- पुस्तक : निषेध के बाद (पृष्ठ 24)
- संपादक : दिविक रमेश
- रचनाकार : अवधेश कुमार
- प्रकाशन : विक्रांत प्रेस
- संस्करण : 1981
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.