पंडित जसराज के लिए

panDit jasraj ke liye

रंजना मिश्र

रंजना मिश्र

पंडित जसराज के लिए

रंजना मिश्र

और अधिकरंजना मिश्र

    रोचक तथ्य

    इस कविता में संगीत की व्याकरणीय शब्दावली के कुछ शब्द हैं, वैसे ये हिंदी के शब्द ही हैं और उनका मतलब भी कमोबेश वही रहता है, जैसे सप्तक : सात स्वरों का एक सप्तक होता है। अनुवादी : राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए अल्प मात्रा में प्रयुक्त स्वर, विवादी : राग में जिस स्वर के प्रयोग से विवाद उत्पन्न हो जाए, और न्यास : ठहराव, हर राग में ठहरने के कुछ निश्चित स्वर होते हैं, उन्हें न्यास के स्वर कहते हैं। तार सा : मध्य सप्तक की सा, जहाँ से क्रमशः स्वर ऊँचे होते जाते हैं। अति तार : तीसरे सप्तक की सा। प अपनी जगह नहीं छोड़ता, सा की तरह : इसलिए इन्हें स्थिर स्वर कहते हैं।

     

    षड्ज

    उजाले के होते हैं नन्हे द्वीप
    नन्ही क़ंदीलें अपने भीतर बसाए
    क्या बसता है तुम्हारे भीतर?

    ऋषभ

    याद है मुझे
    कई बरस पहले भज गोविंदम सुनते हुए
    भीतर कहीं कुछ दरक गया था
    रोशनी की एक किरण
    उस अँधेरी गुफा तक जा पहुँची
    जहाँ बैठा था
    ढेर सारा डर
    काले रंग का संशय
    और गहरा भूरा अविश्वास
    क्या वह दुख था पंडित जी?
    अलग-अलग मुखौटे लगाए
    आत्मा के मुख़्तलिफ़ कोनों में छिपा?
    जीता जागता, साँसे लेता—तार-सा पर ठहरा दुख
    जो नि ध म और कोमल ग की सीढ़ियाँ उतरता
    बह आया था आँखों के रास्ते
    पिघलते हैं विशाल हिमखंड जैसे

    गंधार    

    मैं बार-बार लौटी
    भटकती रही
    उन सुरों के इर्द-गिर्द
    अपने दुखों का मुआयना करती
    जैसे भटकते हैं हम
    सूने पवित्र खंडहरों में
    जो अब रहने लायक़ नहीं
    प ध नि, प ध सा ने समझाया
    दुख ही तो है—
    ठहरेगा नही देर तक
    किसी स्वर पर
    चंचल प्रकृति सिर्फ़ लक्ष्मी की नहीं होती
    'मेरो अल्लाह मेहरबान' के साथ
    मन देर तक तिरता रहा
    आश्वासन की उँगली थामे
    ‘औलिया पीर पैग़ंबर ध्यावे’ के साथ सारे भ्रम रह गए पीछे
    गोविंदम गोपालम सुनते हुए जाना कि
    मन न तो आस्तिक है न नास्तिक
    वह तरल होता है
    और ढूँढ़ता है एक लय
    जो उसे भर दे
    अथाह सुख से
    मैदानों में धीमी गति से बहती नदियाँ देखी हैं न?

    मध्यम    

    गोविंद दामोदर माधवेति सुनते हुए
    कृष्ण आ खड़े हुए सामने
    मैने तो नहीं देखा किसी मिथकीय कृष्ण को
    न ही कोशिश की उस कृष्ण को जानने की
    जो प्रेमी से योद्धा में बदल गया
    पर जब तुम गाते हो
    तो प्रेमी का दुख और योद्धा की विवशता
    मेरी कल्पना में एकाकार हो उठते हैं
    उस दिन जब आपने गाया
    पवित्रम परमानंदम, त्वम वंदे परवेश्वरम
    तो मैं जान गई
    अगर होगा कहीं परमेश्वर
    तो वह अपनी दुनिया आपके सुरों के सहारे छोड़
    आपके सुरमंडल में डूबता उतराता होगा
    उठा ली होगी उसकी दुनिया आपके सुरों ने
    अपने काँधे पर
    वैराग का रंग तो जोगिया होता है पंडित जी
    वह कैसे सुर में गाता है?

    पंचम    

    आपके स्वर कहते हैं
    सुखावसानम ईदम एव सारम
    दुखावसानम इदं एक ध्येयम
    सारे सुख, दुख की यात्रा करते हैं
    और सारे दुख लौट पड़ते हैं
    सुख के घर
    यह कैसा सूत्र है जो
    मुझे मुक्त करता है
    विशाल और उदार को इंगित करता है
    ठीक तुम्हारे स्वरों की तरह?
    कौन हैं आप पंडित जी
    स्वर्ग से निष्कासित कोई गंधर्व
    कोई संत वैरागी
    अपने स्वर में उजाले बसाए जो घर घाट गाता फिरता है
    और मन को बार-बार
    पंचम की स्थिरता तक ले आता है
    ठीक उस कृष्ण की तरह जिसने युद्ध के मैदान में अर्जुन को गीता समझाई थी

    धैवत

    कौन से दुख की पोटली छिपाए फिरते हो?
    कालिघाट की प्रोतिमा क्या अब भी छुपी बैठी है कहीं? 
    आप जानते हैं न
    वह आपसे मिलने आई थीं
    विदा नहीं ले पाईं
    बस चली गईं
    फिर लौट नहीं पाईं
    आप ज़रूर जानते हैं
    पीड़ा के कितने सप्तक काफ़ी होते हैं
    सुख के एक क्षण का न्यास जीने के लिए
    और सुख अगर देर तक ठहर जाए
    तो अनुवादी से पहले विवादी में क्यों बदल जाता है
    उस दिन जब दुख के अति तार से प्रोतिमा का हाथ थामकर
    आप उन्हें प की साम्यावस्था तक ले आए थे
    तो क्या वह उनकी नई यात्रा की शुरुआत थी?

    निषाद

    नहीं जानती आपका दुख मुझे खींचता है
    या उसके पार जाकर स्वरों में ढूँढ़ना उसका संधान
    जानती हूँ तो बस इतना ही
    जब तक रोशनी अपना सुरमंडल लिए
    बैठेगी मंच के मध्य
    उज्ज्वल हो जाएगी यह धरती
    सातों आसमान
    और मेरा मन
    मैं आश्वस्त हूँ
    कि बार-बार लौटूँगी
    घनीभूत पीड़ा के अंतहीन क्षणों से
    तुम्हारे स्वरों तक
    अपनी ही राख से
    नया रूप धर कर।

        
    स्रोत :
    • रचनाकार : रंजना मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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