मैं फिर बेहतर थी

main phir behtar thi

अनुराधा सिंह

अनुराधा सिंह

मैं फिर बेहतर थी

अनुराधा सिंह

और अधिकअनुराधा सिंह

    उसने बहुत दिया मुझे

    अब वापस कैसे करूँ उतना सब

    जिन दिनों वह दे रहा था मुझे दुनियादारी के सबक़

    दुनिया झुलस रही थी

    बैर की आग में

    तरुण यज़दी लड़कियाँ

    नोची जा रहीं थीं दरिंदों के हाथों

    मैं फिर बेहतर थी।

    जितने कष्टसाध्य काम थे

    उन सबके घाट पर ला खड़ा किया है उसने मुझे

    मेरे जैसे कमज़ोर इंसान के लिए

    किसी से मुँह फेर लेना असंभव था

    अंतर्भूत था स्वयं से प्रेम करना

    उसने सुनिश्चित किया कि

    कोई प्रेम करे मुझे अब

    मैं भी नहीं।

    फिर भी बेहतर हूँ उन औरतों से

    जो अपने देशों की लड़ाई में ख़ून-खच्चर हुई थीं सरापा

    दिल भी हुआ था उनका

    दिल ही सबसे ज़्यादा

    मुझे तो सिर्फ़ चीख़ती धूप में खड़ा कर दिया

    कुचलती रौंदती बारिश के नीचे

    ठगी गई थी मैं ऐसी

    कि मेरा सारा असबाब सलामत था

    वह सिर्फ़ मुझसे प्रेम करने की सायत

    और रिवायत ही तो भूला था

    और क्या हुआ था मेरे साथ

    मैं बहुत बेहतर थी

    लीबिया, सीरिया की बेटियों और अफ़गान औरतों से

    बहुत बेहतर थी मैं उन औरतों से

    जिनके दुःख दिखते हैं

    जो छाती पीट कर रो सकती हैं

    पछाड़ खा सकती हैं

    विलाप कर सकती हैं

    नहीं दिखा सकती मैं अपने ज़ख़्म

    किसी पेचीदा मरहम को

    नहीं माँग सकती बेनींद रातों का हिसाब

    एहतियाती सिरहाने से

    नहीं रोई कभी

    क्योंकि मैं सबसे बेहतर थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराधा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए