जलदस्यु

jaldasyu

अनुपम सिंह

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जलदस्यु

अनुपम सिंह

और अधिकअनुपम सिंह

    एक दूसरे के साथ तैराकी के लिए हम उतर गए थे

    खारे से खारे जल में

    हमें जल का अवगाहन प्रिय था जलदस्यु

    हमने डुबो दीं अपनी-अपनी नौकाएँ

    फेंक दिए चप्पू अपने

    हमने एक दूसरे की पीठ पर तैराकी सीखी

    जल-बिंदु, स्वेद-बिंदु, और देह का वह अमर कण

    हमने सभी को प्रणम्य मानकर

    एक दूसरे को अधिक कामार्त किया

    वे सभी बूँदें और तुम्हारा प्रेम जलदस्यु

    मेरे ललाट पर चमक रहा है

    जल-सी शीतल किरण फूट रही है मेरे आँखों से

    और तृप्ति से प्रफुल्लित मेरी यह देह देखो!

    एक दूसरे का जल चुराते और चखते हुए

    हमने जल के बीज बोए

    अब उस जल के अँखुए उगे हैं

    देखों तो कैसे-कैसे तरंगित हो रहे हैं

    जल की इस सम्मिलित धारा में

    अहम् था इदम्

    फिर भी था जल का अलग-अलग स्वाद

    दूर तक के इस उत्ताल तरंग में

    हमारा ही तो जल है जलदस्यु

    वही एक जल!

    एक ही आग थी जो हमें ले आई थी जल तक

    एक ही मिट्टी जो मेड़ों को तोड़

    मिल रही है जल में

    हे जलदस्यु!

    इस जल की क़ीमत हम अदा करेंगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुपम सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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