अधिनायकवादी चरित्र
ज़रूरी नहीं कि वह
‘हेल हिटलर’ रूपी सलाम बजवाता ही दिखे
दिखे किसी सिनिकल मुद्रा में उसकी मूँछों की उद्दंड नोंक
या उसके जूतों की कर्कश ताल और आपका काँपता शरीर दिखे
उसके साम्राज्य में प्रत्यक्ष कोड़े बरस रहे हों
लहूलुहान शरीरों से रक्त की धारा
किसी कॉन्सन्ट्रेशन कैम्प में नरसंहार
चाउसेस्कू या इदी अमीन का रूप धारण करने की ज़ोर-आज़माइश
अधिनायकवादी चरित्र में सिर्फ़ ऐसा ही कुछ होता दिखे, क्या ज़रूरी है
हो सकता है किसी फ़िल्म में
सीधे-सीधे अधिनायक वाले रूप में दिखने की बजाय
उसका गुरुडम भाव
कथ्य के फ़िल्मांकन में रचा-बसा हो
आपके शरीर को अनजाने ही रोमांचित कर
अपनी मूँछ की उद्दंडता को
संतों की वाणी में छुपा ले
किसी भाषण में वाचन करता दिखे—
अपनी ही सत्ता के ख़िलाफ़ लिखी कविता का पाठ
आपको आश्चर्य तो होगा लेकिन यह भी हो सकता है
वह बंद बोतलों में किसी ब्रांडिड उत्पाद का लिक्विड बना
लुभाने की सुपरलेटिव डिग्री में आपकी चिरौरी कर रहा हो—
‘देखिए साहब! मैं आपके हलक़ में उतर जाने के लिए मरा जा रहा हूँ’
और जब आप अपने किसी स्वप्न में
उस लिक्विड की तरावट महसूस करना चाह रहे हों
वह वहाँ आपका हलक़ ही अपने हाथ में लिए आ बैठे।
- रचनाकार : शंभु यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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