आसान शिकार

asan shikar

मंगलेश डबराल

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आसान शिकार

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

     

    पोलिश कवि विस्वावा शिम्बोर्स्का की कविता ‘यातनाएँ’ और हिंदी कवि रघुवीर सहाय की कविता ‘स्त्री’ की अनुगूँजों के प्रति आभार के साथ      

    मनुष्य की मेरी देह ताक़त के लिए एक आसान शिकार है 
    ताक़त के सामने वह अशक्त और लाचार है  
    कमज़ोर और नाज़ुक हैं उसके बाल और नाख़ून 
    जो शरीर के दरवाज़े पर दिखाई दे जाते हैं 
    इतनी पतली है उसकी त्वचा कि आसानी से नोची जा सकती है 
    और सबसे अधिक ज़द में आया हुआ है छोटा-सा हृदय
    जो इतना आहिस्ता धड़कता है 
    कि उसकी आवाज़ शरीर से बाहर नहीं सुनाई देती 
    जब वह आईने में ख़ुद को देखती है
    तो कोई भी देख सकता है कि वह सुंदर और डरी हुई है    

    मनुष्य की मेरी देह अत्याचारियों के लिए आकर्षण का विषय है 
    वे जानते हैं उसके बहुत सारे इस्तेमाल 
    उसे प्रयोगशालाओं में ले जाया जा सकता है 
    देखा जा सकता है वह कितनी तकलीफ़ बर्दाश्त करेगी  
    कितनी देर बर्फ़ की सिल्लियों और बिजली के झटकों को सहेगी   
    यहाँ तक कि उसकी चर्बी से साबुन बनाने के बारे में भी सोचा गया   
    दखाऊ ऑश्विच माइ लाइ गुलाग गुआंतेनामो अबू गरेब 
    नेल्ली गुलबर्गा नरोदा पाटिया 
    उस पर बहुत-से निशान मौजूद हैं 
    लंबे अनुभवों से भरी हुई वह भाँप लेती है
    कि उस पर आने वाले अत्याचार किस तरह के होंगे 

    मिट्टी हवा पानी ज़रा-सी आग और थोड़े आकाश से बनी है मेरी देह
    उसे मिट्टी हवा पानी और आग में मिलाना है आसान 
    उसकी आत्मा पानी की बूँदों सरीखी है
    जिन्हें पोंछ डालना आसान है 
    पूरी तरह भंगुर है उसका वजूद 
    जिसे मिटाने के लिए किसी हरबे-हथियार की ज़रूरत नहीं पड़ती
    किसी ताक़तवर की एक फूँक उसे उड़ाने के लिए काफ़ी होगी 
    वह उड़ जाएगी सूखे हुए पत्ते या नुचे हुए पंख की तरह 
    उसे फिर से बनाना भी असंभव है
    सभी आतताई जानते हैं उसका यह अनोखापन 

    मनुष्य की मेरी देह किसी तहख़ाने में छिपी नहीं रहती
    वह हमेशा दिखती रहती है
    आस-पास मामूली कामों में लगी रहती है 
    सड़क पार करती है कुछ दूर पैदल चलती है 
    थक कर बैठ जाती है और उठ खड़ी होती है
    प्रेम करती है और फूल की तरह खिल उठती है 
    दुनिया के तानाशाहों को उसे कहीं खोजने की ज़रूरत नहीं पड़ती
    दुनिया में अद्वितीय यह मनुष्य देह थोड़ा साहस जुटाती है 
    और ताक़त के सामने अकेली निष्कवच खड़ी हो जाती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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