मगही लोकगीत : हम नहीं पुजबइ बरहिया
maghi lokgit ha hum nahin pujabai barhiya
रोचक तथ्य
संदर्भ—बरही।
हम नहीं पुजबइ बरहिया, भइया नहिं अयलन हे।
चेरिया, देखि आवऽ हमरो बिरना, कहुँ चलि आवत हे।।1।।
यही बीचे अयलन भइया त जियरा जुड़ाय गयलन हे।
अब हम पुजबो बरहिया, भइया मोर आयल हे।।2।।
सासु जी कहँमाहि धरियइ देउरिया, कहाँ रे सोठाउर हे।
सासु जी कहँमाहि बइठइयइ बीरन भइया, देखतो सोहामन लगे हे।।3।।
सद्यः प्रसविनी बहू कहती है कि मैं बरही के दिन पूजन नहीं करूँगी, क्योंकि अभी तक मेरे भाई नहीं आए हैं। हे दासी! तू ज़रा बाहर जाकर देख तो आ, कहीं मेरे भाई चले तो नहीं हैं?।।1।।
इसी बीच भैया आ गए, तब बहिन का हृदय शीतल हो गया। उसने कहा—“अब मैं बारहवें दिन पूजन करूँगी, मेरे भैया आ गए हैं''।।2।।
बहू ने सास से कहा—हे सास जी! कहाँ दौरी रखें, कहाँ सोठौरा और मेरे वीर भाई कहाँ बैठे। देखने में वे बड़े शोभायमान लगते हैं।।3।।
- पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 70)
- संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
- प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
- संस्करण : 2002
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