अवधी लोकगीत : जलिमा दुवारे रामा पाँच पेड़ निमिया हो ना

awadhi lokgit ha jalima duware rama panch peD nimiya ho na

रोचक तथ्य

संदर्भ—पति और पत्नी की नोंक-झोंक।

जलिमा दुवारे रामा पाँच पेड़ निमिया हो ना।

रामा, नि-मिया कै सितली बयरिया हो ना।।1।।

निमिया कटाइ जलिमा पलँग सलावै हो ना।

रामा, चारि पाँव सेदुरा ढुरावै हो ना।

रामा, रेसम कै लावै ओरदावनि हो ना।।2।।

एकइ बल सूते जलिमा सिपहिया हो ना।

रामा, एक ओरी चतुरी पतुरिया हो ना।।3।।

वाहे चल वाहे चल जलिमा सिपहिया हो ना।

एतनी बचन सुनि जलिमा सिपहिया हो ना।।

घोड़े भये असवरवा हो ना।।4।।

माया धरे अटुकी, बहिन सिर चादरि हो ना।

रामा, धना धरे घोड़े कै लगमिया हो ना।।5।।

माया छोड़े अटुकी, बहिन सिर चादरि हो ना।

रामा , धना छोड़ घोड़े कै लगमिया हो ना।।6।।

माया भेजे चुनरी, बहिन रेसम चोलिया हो ना।

रामा, धना भेजे कमरी के टुकवा हो ना।।7।।

कातब चरखवा जालिम राखब बरधवा हो ना।

जालिम! तुहैं अइस राखब हरवहवा हो ना।।8।।

करब नोकरियाँ धना, राखब पतुरिया हो ना।

धना! तुहैं अइसी राखब नउनिया हो ना।।9।।

ज़ालिम के दरवाज़े पर नीम के पाँच पेड़ हैं, उनकी शीतल बयार है।।1।।

नीम कटाकर अत्याचारी पलंग सलाता है और उसके चारों पावों को सिंदूर युक्त करता है एवं रेशम की ओरदावन लाता है।।2।।

एक ओर ज़ालिम सिपाही सोता है और दूसरी ओर चतुर वेश्या सोती है।।3।।

वेश्या ने उससे कहा—हे ज़ालिम सिपाही यहाँ से चलो। इतना सुनकर अत्याचारी सिपाही घोड़े पर सवार हो गया।।4।।

माता ने उसे रोकने के लिए अटुकी रखी, बहिन ने सिर की चादर रखी और पत्नी ने घोड़े की लगाम पकड़ी।।5।।

तत्पश्चात् माता ने अटुकी छोड़ दी, बहिन ने चादर और पत्नी ने घोड़े की लगाम छोड़ दी।।6।।

फिर माँ ने चूनर भेजी, बहिन ने रेशमी चोली और पत्नी ने कंबल का टुकड़ा भेजा।।7।।

तदुपरांत पति के अनुपयुक्त आचरण को जानकर पत्नी ने उसे उत्तर दिया कि मैं चरखा काढ़ूँगी और किसानी के लिए बैल रचूँगी और हे अत्याचारी तुम्हारा जैसा हलवाहा रखूँगी।।8।।

पति ने उत्तर दिया—हे धना! मैं नौकरी करूँगा और साथ में वेश्या रखूँगा। मैं तुम्हारी जैसी नाइन रखूँगा।।9।।

स्रोत :
  • पुस्तक : हिंदी के लोकगीत (पृष्ठ 182)
  • संपादक : महेशप्रताप नारायण अवस्थी
  • प्रकाशन : सत्यवती प्रज्ञालोक
  • संस्करण : 2002

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