आधुनिक उपन्यास की पृष्ठभूमि
adhunik upanyas ki prishthabhumi
आधुनिक उपन्यास की चर्चा करते समय विषय को मुख्यतया अँग्रेज़ी उपन्यास तक ही सीमित रखना विश्व-साहित्य में उपन्यास के विकास को एकांगी रूप देना है और स्वयं अँग्रेज़ी उपन्यास को भी अधूरा देखना है क्योंकि, विशेषतया उत्तरकाल में वह दूसरी भाषाओं के साहित्यों और साहित्यिक आंदोलनों से अत्यधिक प्रभावित होता रहा है। फिर भी, जहाँ तक हिंदी उपन्यास का प्रश्न है उसकी गतिविधि बहुत-कुछ अँग्रेज़ी उपन्यास के समानांतर ही रही और दूसरी साहित्यों का, यथा रूसी और फ्रांसीसी साहित्यों का प्रभाव उसने अँग्रेज़ी के माध्यम से ही ग्रहण किया। इसके अतिरिक्त हिंदी-पाठक अँग्रेज़ी साहित्य से न्यूनाधिक मात्रा में परिचालित होता ही है और इतर साहित्य का ज्ञान न इतना विस्तृत होता है, न इतना व्यवस्थित। इसलिए उपन्यास-संबंधी साधारण स्थापनाओं के उदाहरण देने के लिए अँग्रेज़ी साहित्य को सामने रखना कदाचित् अधिक उपयोगी होगा।
आधुनिक उपन्यास के लक्षण पहचानने और उसे पूर्ववर्ती काल के अथवा विक्टोरियन युग के उपन्यास से पृथक करने के लिए थोड़ा ऐतिहासिक प्रत्यवलोकन आवश्यक है।
विक्टोरियन उपन्यास के विकास की पहली सीढ़ी डिकेंस और थैकरे को माना जा सकता है। दोनों में बहुत अंतर है, फिर भी दोनों पर साथ विचार किया जा सकता है क्योंकि दोनों का उद्देश्य समाज को तद्वत् और संपूर्ण चित्रित करने का था। दोनों ने अपने-अपने ढंग से समाज की सजीव गतिमयता का चित्र खींचा। डिकेंस बौद्धिक नहीं था, उसने डार्विन नहीं पढ़ा था और विकासवाद के सिद्धांत से वह अपरिचित था। फिर भी समाज के विकास अथवा गतिमयता के प्रति उसकी दृष्टि सजग थी। पात्रों का घटनाओं के द्वारा चरित्र-विकास दिखाने में डिकेंस असमर्थ है और उसके चरित्र आरंभ में जैसे आते हैं अंत तक वैसे ही चलते हैं। किंतु उसके उपन्यास में लोककथा की-सी शक्ति है और उसके अनेक चरित्र ऐसे लोकचरित्र हैं, जो अँग्रेज़ी पाठक के साधारण जीवन और बातचीत के मुहावरे का अंग बन गए हैं। जैसा किसी ने कहा, “जीवन में वैसे चरित्र नहीं होते, लेकिन उससे जीवन ही घाटे में रहता है। मिकॉबर और मिसेज़ गैम्प आदि जैसे पात्र अगर विधाता ने नहीं बनाए होते तो हमारा मन यही कहता कि उसे बनाने चाहिए थे। थैकरे ने जीवन का गंभीर चित्र खींचने का प्रयत्न किया। उसका 'वैनिटी फ़ेयर' इस समय तक के अँग्रेज़ी साहित्य में समाजालोचना का सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
वास्तव में डिकेंस और थैकरे को ही आधुनिक उपन्यास के आदि-प्रवर्तक माना जा सकता है। लेकिन फिर भी आधुनिक उपन्यास उनके उपन्यासों से बिल्कुल भिन्न है, जैसा कि हम अभी देखेंगे।
विक्टोरियन उपन्यास के विकास का दूसरा चरण ऐंटर्नी ट्रालॅप, जॉर्ज इलियट और मेरेडिथ में लक्षित होता है। ट्रॉलॅप को थैकरे का अनुयायी माना जा सकता है यद्यपि वह स्वयं एक अच्छा उपन्यासकार था। तथापि यह भी कहा जा सकता है कि वह उपन्यासकार का उत्तम उदाहरण था क्योंकि वह शुद्ध उपन्यासकार था, ऐसा उपन्यासकार नहीं जो साथ-साथ कवि या आलोचक या समाज-शास्त्री या सुधारक भी हो। उसके लिए मुख्य बात कहानी कहना था। युवक और युवतियों के मनोरंजन के लिए साधारण जीवन का ऐसा चित्र जिसमें हास्य का पुट, करुणा की मिठास हो, वह ट्रॉलॅप के उपन्यास की परिभाषा है। उसके उपन्यासों में चरित्र के मनोविश्लेषण का अनुपात कुछ अधिक था। लेकिन फिर भी उसकी मूल प्रवृत्ति समाज-चित्रण की ही थी। स्वभाव से वह परंपरावादी था और धार्मिक तथा नैतिक रूढ़ियों की ओर उसकी प्रवृत्ति सहज स्वीकार की ही थी। जॉर्ज इलियट, मेरेडिथ और हेनरी जेम्स मुख्यतया चरित्र का विश्लेषण करते थे। जॉर्ज इलियट, अपने समकालीनों की अपेक्षा अधिक बौद्धिक थी। नैतिक मान्यताओं के प्रति विद्रोह तो उसमें नहीं था तथापि परंपरागत धर्म-विश्वास पर उसे संदेह था। वह ईसाई नीति-शास्त्रों को मानती और उसकी रक्षा करना चाहती थी लेकिन साथ ही उसे आधिदैविक या अति-प्राकृतिक आधारों से अलग भी करना चाहती थी।
मेरेडिथ में दार्शनिक जिज्ञासा का भाव और उभर कर आया। वह जॉर्ज इलियट की अपेक्षा कहीं अधिक मौलिक विचारक था, जीवन के तथा धर्म के गंभीरतम प्रश्नों के प्रति सजग और उचितानुचित, पाप-पुण्य आदि की समस्याओं में उलझा हुआ। जिन प्रश्नों को थैकरे ने अपने समाजालोचना में कभी छुआ भी न था उन्हें मेरेडिथ मुख्य रूप से सामने लाता था। मेरेडिथ ने ही पहले-पहल समकालीन तथा विक्टोरियन उपन्यास की अपर्याप्तता घोषित की और जीवन-दर्शन की आवश्यकता पर जोर दिया। “यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि यदि हम शीघ्र ही उपन्यास में जीवन-दर्शन का समावेश नहीं करते, तो वह कला अपने बहुसंख्यक उपासकों के रहते हुए भी नष्ट हो जाएगी।
तीसरा चरण विक्टोरियन समाज के विघटन का समय है और इस चरण के उपन्यासों में जिज्ञासाएँ तीव्र हो उठती हैं। दूसरी ओर इस काल के लेखक में भाषा की अलंकृति भी बहुत देखी जाती है। इस चरण के मुख्य और महान उपन्यासकार थॉमस हार्डी हैं। मेरेडिथ ने जिन समस्याओं को सूचित ही करके छोड़ दिया था। हार्डी उनकी गंभीरता से आतंकित हो उठता है। वह समस्याओं को ही गंभीर और विचारपूर्ण ढंग से उपस्थित नहीं करता बल्कि उनके सुलझाने या उत्तर की ओर भी संकेत करता है। 'टेस' में पतिता नारी के जीवनाधिकार का प्रश्न उठाया गया है। 'जूड द ऑब्सक्योर' में समाज के अंदर व्यक्ति की समस्याओं को उठाया गया है। लेकिन हार्डी की आलोचना को सामाजिक नहीं कहा जा सकता, वह जागतिक (कॉस्मिक) ही है क्योंकि उनका आक्रोश समकालीन समाज-व्यवस्था की रूढ़ियों के प्रति नहीं, समूचे जीवन-विधान के प्रति है। उसके अनुसार एक ओर मानव प्राणी है जो अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं और आयोजनों को समझता है; दूसरी ओर जड़ प्रकृति है जिसमें न चेतनता है, न विवेक। इस प्रकार मानवीय प्रवृत्तियाँ तो बोधगम्य है लेकिन घटनाक्रम तर्कातीत और विसंगत है। जड़ जगत का संगठन विवेकपूर्ण नहीं है। मानव और प्रकृति का यह विरोध, मानवीय उद्योग और विधि के विधान का यह वैषम्य या असंगति ही मानव की ट्रेज़ेडी का मूल है।
हार्डी का साहित्य लोक-परंपरा और लोक-विश्वासों पर निर्भर करता हुआ चलता है। लोक-गाथा, लोक-कला, लोक-विश्वास और लोक-धर्म उसके साहित्य में इतना महत्त्व रखते हैं कि उपन्यास को विशिष्ट प्रदेश और उस प्रदेश की लोक-परंपरा से पृथक करके पूरी तरह नहीं समझा जा सकता।
हार्डी को 'अंतिम विक्टोरियन' कहा जाता है। लेकिन उसे इतनी बड़ी सार्थकता के साथ 'अंतिम एलिज़ाबीथन' भी कहा जा सकता है। क्योंकि हार्डी शेक्सपियर के साहितय में डूबा हुआ है और शेक्सपियर का या एलिज़ाबेथ कालीन नाटककारों का प्रभाव उसके साहित्य में स्पष्ट लक्षित होता है। उदाहरणतया हार्डी के देहाती पात्र शेक्सपियर के पात्रों से बहुत-कुछ मिलते हैं, वही पार्थिवता और यही काव्यमयता उनमें होती है। इसी प्रकार दैव संयोग (कोइंसिडेंस) और हास्य का वैसा ही उपयोग हार्डी में है जैसा कि एलिज़ाबेथ कालीन नाटक में। वैचित्र्य और वैषम्य का एलिज़ाबेथ कालीन आकर्षण हार्डी को भी आकृष्ट करता है। 'रिटर्न ऑफ़ द नेटिव' के अंशो की तुलना वेब्स्टर के 'द व्हाइट डेविल' से और ‘मेयर ऑफ़ कास्टरब्रिज' की तुलना शेक्सपियर के 'किंग लियर' से की जा सकती है।
हार्डी का समकालीन एक उपन्यासकार अँग्रेज़ी उपन्यास की परंपरा में विशेष स्थान रखते हुए भी प्रायः उपेक्षित होता रहा है; वह है जॉर्ज गिसिंग। इसका कारण कुछ तो हाडी का नैकट्य हो सकता है, कुछ यह कि गिसिंग की सत्यवादिता में एक रूखापन और कटुता है। वास्तव में गिसिंग ‘मोह-भंग' का पहला उपन्यासकार है। शैली और विधान की दृष्टि से यद्यपि वह परंपरानुगामी है, तथापि वस्तु की दृष्टि से वह भविष्योन्मुखी है; रुमानी प्रभावों से मुक्त, स्पष्टवादी, धार्मिक और राजनीतिक मान्यताओं के विषय में संदेहवादी। गिसिंग ने इसका तीव्र अनुभव किया कि उपन्यास को अपना विस्तार नए वर्गों और नई गहराईयों में ले जाना चाहिए। 'अनक्लास्ड' (वर्गच्युत) नामक उपन्यास में वह कहता है, “रोजमर्रा जीवन का उपन्यास अब घिस गया है। अब हमें और गहरे खोदना होगा और अछूते सामाजिक स्तर तक पहुँचना होगा। इसका अनुभव डिकेंस ने किया था लेकिन उसमें अपने विषय का सामना करने का साहस नहीं था।
गिसिंग के इस मोह-भंग में नए अथवा आधुनिक उपन्यास का बीज निहित है। विक्टोरिया के युग के बाद एडवर्ड का काल केवल एक अंतराल है; विक्टोरियन से परिवर्तन वास्तव में प्रथम विश्व युद्ध में ही आया, जिसने सहसा भारी उथल-पुथल कर दी और नए उपन्यास को जन्म दिया। आधुनिक उपन्यास वास्तव में युद्धोत्तकाल का उपन्यास है। यह दूसरी बात है कि उसके बीज, जैसा ऊपर बताया गया है पूर्ववर्ती कुछ उपन्यासों में ही निहित थे और आधुनिक उपन्यास की परंपरा का विवेचन बिना विक्टोरियन युग में इन प्रवृत्तियों के मूल-स्रोतों को पहचाने हो ही नहीं सकता।
विक्टोरियन उपन्यास मध्यवर्ग का, मध्यवर्ग की भावना का, बुर्ज़ुआ संस्कृति का उपन्यास था। उसका विकास इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के समांतर चला, किंतु विश्व-युद्ध ने बुर्ज़ुआ जगत को जड़ से हिला दिया। उसकी संस्कृति लड़खड़ा कर टूट गई। उसके प्रतिमान सहसा संदिग्ध हो उठे :
सभी मानवीय संबंध परिवर्तित हो गए हैं स्वामी और भृत्य के, पति और पत्नी के, माता-पिता और संतति के। और जब मानव-संबंधों में परिवर्तन आता है तब धर्म, आचार, राजनीतिक और साहित्य में भी साथ-साथ परिवर्तन होता है।” (वर्जिनिया वूल्फ़)
साहित्यकार की दृष्टि अब वर्गों के संघर्ष को स्पष्ट देखने लगी। इतना ही नहीं, उसने देखा कि वर्गों के जीवन के वृत्त के भीतर भी अनेक दरारें पड़ गई हैं, वर्ग-संघर्ष के भीतर जातियों या घरानों के एक अलग संघर्ष की लीकें पहचानी जा सकती है। महायुद्ध ने मध्यवर्ग के जीवन को तो हिलाया ही, घरानों के जीवन पर भी गहरा आघात किया। महायुद्ध की चपेट में एक समूची युवा पीढ़ी को खोकर ये मध्यवर्गीय घराने अपने भविष्य की अनिश्चितता से आतंकित हो उठे क्योंकि युवा पीढ़ी के मिट जाने से उनकी संपत्ति का उत्तराधिकार और कुल का स्थायित्व ज़ोखिम में पड़ गया। संपत्ति-मात्र खतरे में है, यह दुश्चिंता मध्यवर्गीय जीवन को घुन-सी खाने लगी।
गाल्सवर्दी और किपलिंग इस संकट के उपन्यासकार हैं। गाल्सवर्दी के 'फ्रोइिट सागा' की उपन्यास-परंपरा घरानों के जीवन के विस्फोट का ही चित्र है। मैंने ‘ऑफ़ प्रॉपर्टी’ का नाम ही अभिप्राय-भरा है और 'प्रॉपर्टी' की रक्षा की व्याकुलता गाल्सवर्दी के पात्रों का मुख्य मनोभाव है : वर्गीय या कुलगत मर्यादाओं की रक्षा का आग्रह संपत्ति-संबंधी उस चिंता का ही प्रक्षेपण है।
वर्जिनिया वूल्फ़ और गाल्सवर्दी-किपलिंग में एक बड़ा अंतर है : ये दोनों उपन्यासकार बुर्ज़ुआ उपन्यासकार हैं किंतु वर्जिनिया वूल्फ़ बूर्जुआ नहीं है, यद्यपि उसे बुर्ज़ुआ-विरोधी भी नहीं कहा जा सकता। उसकी बौद्धिकता और सूक्ष्म अनुभूति उसे इससे ऊपर उठाते हैं। प्रतिमानों के बुर्ज़ुआ होते हुए भी उसका दृष्टिकोण अधिक बौद्धिक और उसकी संवेदना का वृत्त अधिक विस्तृत है।
इसके अनंतर जो महत्त्वपूर्ण नाम सामने आता है और इस नाम के साथ अँग्रेज़ी उपन्यास संक्रांति-काल पार करके 'आधुनिक' युग में आ जाता है, वह डी. एच. लॉरेंस का है। लॉरेंस स्पष्टतया बुर्ज़ुआ -विरोधी था। अपने युग की वह एक अद्भुत अनमिल उपज था। उसका दृष्टिकोण रुमानी था, परंतु बुर्ज़ुआ -विरोधी क्योंकि उसमें एक नास्तिक अभिजात्य था। उनकी चरमवादी प्रवृत्ति इस बनी-बनाई घटिया दुनिया को सह नहीं सकती थी। उसका विद्रोह इस 'रेडी मेड' बुर्ज़ुआ मानदंडों के प्रति उसका अस्वीकार एक अनीश्वरवादी या सर्वदेवतावादी (पैगन) की स्वच्छंदता की घोषणा थी। भौतिक जीवन के साथ चेतना का एक ऐसा नया संबंध स्थापित करने के लिए जो बूर्जुआ जीवन के ओछेपन से बंधा हुआ न हो, उसकी अभिजात मनोभावना संसार की सभी मानी हुई संस्कृतियों का तिरस्कार करके उनके घेरे से बाहर जाने को तैयार थी। ग्रीक, यहूदी, रोमी, मध्ययुगीन, पुनरुत्थान कालीन सभी संस्कृतियों को अपर्याप्त पाकर लॉरेंस नई खोज के लिए कहीं भी जाने को आतुर था।. भूली हुई प्राक्-सभ्यताओं की ओर भी “आई वॉन्ट टू टर्न माई बैक ऑन द होल ब्लास्टेज पास्ट” मैं समूचे अभागे अतीत की ओर पीठ फेर लेना चाहता हूँ, यह लॉरेंस की उक्ति थी; और यूरोप को छोड़कर वह मेक्सिको गया था तो संवेदना के किसी पुराने अर्द्ध-विस्मृत प्रकार की खोज में। मेक्सिको-विषयक अपने उपन्यास 'द प्लम्ड सर्पेट' में वह लिखता है: “मैं मूलभूत भौतिक यथार्थताओं के प्रति संवेदना का पुनःसंस्कार करना चाहता हूँ।
विक्टोरियन काल की प्रवृत्तियाँ लॉरेंस के परवर्ती युग में भी लक्षित होती हैं, और लॉरेंस के पूर्वसूचक विक्टोरियन युग में थे; पर लॉरेंस से स्पष्ट युग परिवर्तन माना जा सकता है। इस ऐतिहासिक अवलोकन के बाद अब इसपर विचार किया जा सकता है कि आधुनिक उपन्यास की कौन-सी प्रवृत्तियाँ उसे विक्टोरियन उपन्यास से पृथक करती हैं।
1. जो है उसके प्रति, समवर्ती नैतिक, सामाजिक, राजनीतिक मूल्यों के प्रति, अस्वीकार और नए प्रतिमानों की प्रतिष्ठा की आकुलता, यही वह मौलिक भेद है जो विक्टोरियन और आधुनिक का काल-विभाजन करता है। नए प्रतिमानों और मूल्यों की यह खोज लॉरेंस और ट्रॉलॅप की तुलना करने से स्पष्ट उभरकर सामने आती है। लॉरेंस सर्वथा आधुनिक है, ट्रॉलॅप संपूर्णतया विक्टोरियन। दोनों का न केवल मुहावरा भिन्न है वरन् अनुभूति-क्षेत्र ही अलग-अलग है।
नए मूल्यों की खोज को लॉरेंस भावना के और काम-संबंधों के क्षेत्र में भी ले जाता है। उसके पात्र अभूतपूर्व हैं। उनमें हम उनकी चेतना से पृथक उनकी संवेदनाओं का प्रवाह और आदान-प्रदान देखते हैं। चेतन भावनाओं और अचेतन संवेदनाओं के स्तर अलग-अलग हैं, दोनों में तीव्रता और प्रवाह है। लॉरेंस के पात्रों का भाव-जीवन उतना ही गतिमय है जितना हेनरी जेम्स के पात्रों का बुद्धि-जीवन : “जानना रक्त से होता है, केवल मन से नहीं” डी. एच. लॉरेंस। दोनों में ऐंद्रिय संवेदनाओं का वर्णन करने और उन्हें पाठक तक पहुँचाने की असाधारण क्षमता थी और दोनों ने उपन्यास की पहुँच और गहराई को बढ़ाया।
जेम्स जॉयस अंशतः ही आधुनिक है। भाषा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में उसके प्रतिमान आधुनिक हैं, किंतु उसकी नैतिक और सामाजिक मान्यताएँ कैथलिक हैं। इसी प्रकार एल्डस हक्सले और वर्जिनिया वूल्फ़ भी संपूर्णतया आधुनिक नहीं हैं क्योंकि वे केवल कुछ ही क्षेत्रों में नए प्रतिमान खोजते या चाहते हैं, और ऐसे क्षेत्रों में पुराने प्रतिमानों को ही मानते चलते हैं। हक्सले ने प्रायः ऐसे समाज या काल का चित्रण किया है जिसमें कोई प्रतिमान ही नहीं हैं; कोई ऐसे आधार ही नहीं हैं जिनपर कर्म या आचार की कसौटी हो सके। ‘पाएंट काउंटरपाएंट' में लॉरेंस के पथ की ओर थोड़ा-सा झुकाव है, किंतु अनंतर हक्सले रहस्यवादी या आध्यात्मिक अन्वेषण की ओर झुक जाता है, जिसके प्रथम संकेत ‘दोज़ बैरन लीव्स' में मिलते हैं और अधिक विकसित रूप ‘आइलेस इन गाजा' में और 'टाइम मस्ट हैव ए स्टॉप' में। इस दृष्टि से हक्सले वास्तव में अर्ध-आधुनिक भी नहीं, छद्म आधुनिक ही है। नए मूल्यों की खोज ने जो अनेक दिशाएँ ग्रहण की, उनमें कुछ का संक्षेप में निरूपण कर देना अनुचित न होगा :
(क) धर्म और नीति के क्षेत्र में मानववाद, करुणा के आदर्श की पुनः प्रतिष्ठा।
(ख) सहज बोध बनाम बुद्धिमन के विरुद्ध 'रक्त' का सहारा।
(ग) समाज-संगठन के क्षेत्र में बूर्जुआ सामाजिक ढाँचे का तिरस्कार, घरानों और परिवारों
के जीवन का विघटन।
(घ) काम-संबंधों के क्षेत्र में सेक्स की नई परिभाषा, जो उसे न निरा शरीर-संबंध मानती
है, न केवल सामाजिक बंधन या व्रत, बल्कि एक ‘गतिशील-सम्पृक्त भाव' (डाइनैमिक कम्यूनिकेशन) ।
2. आधुनिक विज्ञान के आविष्कारों ने जो नई समस्याएँ खड़ी कर दी हैं उनके कारण जो अवस्था उत्पन्न हुई है, वह आधुनिक उपन्यास की दूसरी विशेषता है।
वैज्ञानिक आविष्कारों ने मानव को नई दृष्टि दी है, पर उसके कारण हमारी मान्यताओं में और उनके आधारों में जो परिवर्तन आते हैं उन्हें हम पूर्णतया स्वीकार नहीं कर सके हैं, जीवन और आचार में आत्मसात करना तो दूर की बात है। ज्ञान और आचार की अवस्थाओं में यह विपर्यय अनेक समस्याएँ और संघर्ष उत्पन्न करता है जो आधुनिक जीवन का एक मूलभूत सत्य है और जिनका प्रभाव आधुनिक उपन्यासकार पर पड़ना अनिवार्य है।
मार्क्सवाद इन समस्याओं का निराकरण नहीं करता। यह जीवन का एक वैज्ञानिक जड़वादी आधार उपस्थित करना चाहता है, पर यह आधार अपर्याप्त है और इसलिए असह्य हो उठता है। यह नहीं कहा जा सकता कि आधुनिक उपन्यासकार ने विज्ञान को जीवन का आधार मान लिया
फ़ुटप्रिंट - ( डी.एच. लोरेंस ने कहा है : “मैन मस्ट बी सुप्रीम, अदरवाइज़ रिलेशनशिप इज़ फिलियल, दैट इज़, इट इज़ इनसेस्ट )
है। निःसंदेह कई नए उपन्यासकार दावा करते हैं कि हमारी संवेदनाएँ बिल्कुल बदल गई हैं और उनका आधार संपूर्णतया वैज्ञानिक है, पर वास्तव में यह दावा निराधार है। यह तो ठीक है कि वे डी. एच. लॉरेंस से भिन्न है, पर कालाकार के रूप में वे कुंठित है और अपनी मान्यताओं के ढाँचे के अंदर असंतोष और कुंठा का अनुभव भी करते रहते हैं। डी. एच. लॉरेंस का आमूल विद्रोह या नकारात्मक आग्रह उनका नहीं है, उसे वे भ्रांत मानते है; पर स्वयं शांति या स्थिरता पाने में वे असमर्थ हैं। काव्य में मायाकोवस्की, या उपन्यास में ऐरेनबुर्ग इसके अच्छे उदाहरण हैं। स्वयं अपनी मान्यता और अपने जीवन का अंतर्विरोध उन्हें बेचैन कर देता है, यह बेचैनी और उदभ्रांति उनकी रचना में अभिव्यक्त होती है। भिन्न-भिन्न कारणों से उत्पन्न यह उदभ्रांति क्या मार्क्सिस्ट लेखकों में और क्या अन्य लेखकों में, आधुनिक उपन्यास की विशेषता है।
आधुनिक उपन्यासकार वर्तमान परिस्थिति या परिवेश को अस्वीकार करता है किंतु नए स्तर पर किसी परिवेश का स्वीकार या उसके साथ समन्वय की स्थापना नहीं कर पाया। इससे जो शून्य उत्पन्न होता है, वह आधुनिक उपन्यास का एक विशेष लक्षण है। आधुनिक उपन्यास नया उपन्यास है, लेकिन उसका नयापन न तो विषय-वस्तु का नयापन है, न विधान का, न कथानक का, न रूपाकार का; वह मूलतः जीवन के प्रति दृष्टिकोण का नयापन है। यद्यपि वस्तु, शैली, विधान, कथा आदि का नयापन उसमें हो सकता है और होता भी है, तथापि उसकी आधुनिकता की कसौटी वह नहीं है, कसौटी उसका नया दृष्टिकोण ही है।
3. समय या काल के प्रश्न को लेकर आधुनिक उपन्यासकार की व्यस्तता कदाचित् उसके
विज्ञान-संबंधी ऊहापोह का ही एक पहलू है।
काव्य में टी.एस. इलियट और गद्य में वर्जिनिया वूल्फ़ बार-बार 'अतीत की वर्तमानता' की बात करते हैं; वर्जिनिया वूल्फ़ के लिए व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही 'अतीत की खोज' है। उसका एक चरित्र-नायक ऑलैंडो तीन सौ वर्ष तक जीता है; एलिज़ाबेथ के युग में वह बच्चा है, तीस वर्ष की आयु में वह पोप के युग में प्रवेश करता है और सन् 1929 में अभी वृद्धावस्था को प्राप्त नहीं हुआ है। किसी ने इसे 'आइन्स्टाइन के सिद्धांत का काव्य रूप' कहा है। एल्डस हक्सले भी काल के प्रश्न को लेकर व्यस्त है। इसके संकेत उसके प्रारंभिक उपन्यासों में भी मिलते हैं, और 'टाइम मस्ट हैव से स्टॉप' का शीर्षक (यद्यपि वह हैमलेट की उस उक्ति से लिया गया है) इस व्यस्तता को स्पष्ट प्रकट करता है।
किंतु यह आधुनिक उपन्यास का एक अपेक्षया कम महत्त्वपूर्ण पहलू है। वास्तव में उसकी वास्तविक कसौटी उसका दृष्टिकोण ही है। यही उसे पूर्ववर्ती उपन्यास से पृथक करता है, और उसे समझने के लिए इसके ऐतिहासिक विकास और कारणों का समझना आवश्यक है। जैसा कि हम पहले कह आए, विक्टोरियन प्रवृत्तियाँ आधुनिक युग तक भी चली आती हैं, और आधुनिक प्रवृत्तियों के बीच पूर्ववर्ती युग में पाए जाते हैं; तथापि दोनों युगों का अंतर इतना स्पष्ट है कि उसके बारे में भूल हो नहीं सकती, और यह भी समझ में आ जाता है कि दृष्टिकोण के इस आमूल परिवर्तन के बाद फिर पीछे लौटना असंभव है, भले ही पाठकों को विक्टोरियन उपन्यास अधिक रोचक लगते रहें, जैसा कि वे निःसंदेह अनेकों को लगते हैं। यह परिवर्तन एक प्रौढ़ता का द्योतक है जिससे पीछे नहीं लौटा जा सकता। और किसी को क्यों लौटना चाहिए, इसका कारण कम-से-कम कोई आधुनिक तो नहीं सोच सकता।
('सर्जना संदर्भ' नामक पुस्तक से)