सच्चाई की कानाफूसी नहीं होती।
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‘कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा’ मंगलेश डबराल की इस पंक्ति के साथ यह भी कहना इन दिनों ज़रूरी है कि प्रकाशकों में भी बचा रहे थोड़ा धैर्य―बनी रहे थोड़ी शर्म। कविता और लेखक के होने के बहुतायत में प्र
By पंकज प्रखर | 26 सितम्बर 2023
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