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बेला

साहित्य और संस्कृति की घड़ी

रविवासरीय : 3.0 : इन पंक्तियों के लेखक का ‘मैं’

 

• विषयक—‘‘इसमें बहुत कुछ समा सकता है।’’ इस सिलसिले की शुरुआत इस पतित-विपथित वाक्य से हुई। इसके बाद सब कुछ वाहवाही और तबाही की तरफ़ ले जाने वाला था। • एक बिंदु भर समझे गए विवेक को और बिंदु दिए गए।

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27 अप्रैल 2025

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