आत्मा पर कविताएँ

आत्मा या आत्मन् भारतीय

दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।

गिरना

नरेश सक्सेना

इतनी आत्मा

निधीश त्यागी

आत्मत्राण

रवीन्द्रनाथ टैगोर

बिल्ली की आत्मा

गार्गी मिश्र

आत्माएँ

सुमित त्रिपाठी

असंबद्ध

गीत चतुर्वेदी

अभी टिमटिमाते थे

तेजी ग्रोवर

आशा बलवती है राजन्

नंद चतुर्वेदी

चमड़ी

सुमित त्रिपाठी

इतनी आत्मा

निधीश त्यागी

गुड़ की डली

प्रदीप सैनी

बदन का बोझ

पुरुषोत्तम प्रतीक

आइसोलेशन, एक कमरा

सौम्या सुमन

रूह और जिस्म

द्वारिका उनियाल

रूह

बेबी शॉ

शरीर-आत्मा

कुमार मुकुल

आत्मा की मृत्यु

नेहा अपराजिता

आत्मा की मिट्टी

विहाग वैभव

गुलमोहर

आंशी अग्निहोत्री

सुंदर जगहें

ज्याेति शोभा

आत्मा की मौत

दिव्या श्री

अनावरण

प्रेमशंकर शुक्ल

उल्टे पैर

द्वारिका उनियाल

आत्मा की ताक़त

वाज़दा ख़ान

देह के पुल के रास्ते से

मिथलेश शरण चौबे

आत्मा नहीं देह

प्रभात त्रिपाठी

सदियों का ब्लैक होल

द्वारिका उनियाल

दिसंबर

रेणु कश्यप

आत्मा का आवारा

शिरीष कुमार मौर्य

प्रश्न

गोविंद द्विवेदी

संवाद

ज्योत्स्ना मिलन

रूह

मेधा

राग-भाव

कन्हैयालाल सेठिया

आत्माओं की गोद में बैठे

गोविंद द्विवेदी

शिला का ख़ून पीती थी

शमशेर बहादुर सिंह

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