सवैया

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में बाईस से लेकर छब्बीस तक वर्ण होते हैं।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

भगवंतराय खीची के दरबारी कवि। शृंगार की अपेक्षा आश्रयदाता के वर्णन पर ही अधिक ज़ोर। 'रसकल्लोल' नामक रीतिग्रंथ चर्चित।

श्रीहित हरिवंश की शिष्य-परंपरा के कला-कुशल और साहित्य-मर्मज्ञ भक्त कवि।

1860 -1928

द्विवेदी युग के कवि-अनुवादक। स्वच्छंद काव्य-धारा के प्रवर्तक।

रीतिकालीन कवि। सर्वांग निरूपक। पावस-ऋतु-वर्णन के लिए उल्लेखनीय।

1886 -1928

आधुनिककाल के नीति कवि। काव्य-भाषा ब्रजी। अल्पज्ञात कवि।

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

1723

रीतिकाल के अलक्षित कवि।

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