सवैया

वर्णिक छंद। चार चरण। प्रत्येक चरण में बाईस से लेकर छब्बीस तक वर्ण होते हैं।

1538 -1625

अकबर के नवरत्नों में से एक। भक्ति और नीति-कवि। सरस हृदय की रमणीयता और अन्योक्तियों में वाग्वैदग्ध्य के लिए प्रसिद्ध।

रीतिकालीन कवि और अनुवादक। कलाकुशल और साहित्यमर्मज्ञ। चमत्कारिता के लिए प्रसिद्ध।

1666 -1708

सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु। 'खालसा पंथ' के संस्थापक। 'चंडी-चरित्र' के रचनाकार।

रीतिकालीन कवि। ऋतु वर्णन के लिए ख्यात।

रीतिकाल के टीकाकार और अल्पज्ञात कवि।

1830 -1901

रीतिकालीन अलक्षित कवि।

1802 -1867

रीतिबद्ध कवि। सोलह भाषाओं के ज्ञाता। देशाटन से अर्जित ज्ञान और अनुभव इनकी कविता में स्पष्ट देखा जा सकता है। विदग्ध और फक्कड़ कवि।

भक्तिकालीन रीति कवि। 'शृंगार मंजरी' काव्य परंपरा के अलक्षित आदिकवि।

1833 -1860

वास्तविक नाम गोपालचंद्र। आधुनिक साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता।

रीतिग्रंथ रचना और प्रबंध रचना, दोनों में समान रूप से कुशल कवि और अनुवादक। प्रांजल और सुव्यवस्थित भाषा के लिए स्मरणीय।

ओरछा नरेश पृथ्वीसिंह के आश्रित कवि। आचार्यत्व सामान्य, भाषा सरल और उदाहरण सहज हैं।

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