तुम मुष्टिका बाँध के आये इहाँ

tum mushtika bandh ke aaye ihan

चिमनेश

चिमनेश

तुम मुष्टिका बाँध के आये इहाँ

चिमनेश

और अधिकचिमनेश

    तुम मुष्टिका बाँध के आये इहाँ, कर खोले बिना फिर जावनो ना।

    'चिमनेश' दया कर दीनन पै, दिल काहु को देव दुखावनो ना॥

    उपकार भलाई बनै सो करो, बदनामी को ढोल बजावनो ना।

    दिन च्यार को यार तू पावनो है मरजावनो है फिर आवनो ना॥

    हे भाई! तुम मुट्ठी बाँधकर इस संसार में आए थे (जन्म के समय तुम्हारी मुट्ठी बंद थी) और ख़ाली हाथ इस संसार से जाना है। चिमनेश कवि कहता है कि (जब तक इस संसार में हो) ग़रीबों पर दया करते रहो (उनकी मदद करते रहो) और विकट स्थिति में भी किसी का दिल मत दुखाओ। आपसे यदि किसी का उपकार हो सकता है, तो करो लेकिन किसी का चरित्र हनन मत करो (बदनाम मत करो)। मेरे भाई, इस क्षणभंगुर संसार में तू दो दिन का मेहमान है, अंतिम परिणति तो मरण है और मरने के बाद वापस आना नहीं होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 622)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : चिमनेश
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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