कै वह टूटी-सी छानी हती

kai wo tuti si chhani hati

नरोत्तमदास

नरोत्तमदास

कै वह टूटी-सी छानी हती

नरोत्तमदास

और अधिकनरोत्तमदास

    कै वह टूटी-सी छानी हती, कहूँ कंचन के सब धाम सुहावत।

    कै पग मैं पनही हती, कहँ लें गजराजहु ठाढ़े महावत॥

    भूमि कठौर पै रात कटे, कहँ कोमल सेज पै नींद आवत।

    कै जुरतो नहीं कोदो सवाँ, प्रभु के परताप तें दाख भावत॥

    (कवि सुदामाजी की विगत एवं वर्तमान दशा की तुलना करते हुए कहता है—) द्वारिका जाने के पूर्व उनकी टूटी-फूटी झोपड़ी थी, आज उनके सोने के महल हैं। पहले (निर्धन होने के कारण) कहाँ वे नंगे पैर रहते थे, आज उनकी सवारी के लिए गजराज सजे हुए हैं। पहले कहाँ कठोर पृथ्वी पर बिना बिछावन के ही वे रात काट लेते थे, आज कोमल सेज पर भी उन्हें नींद नहीं आती। पहले कहाँ उन्हें कोदों-साँवाँ-जैसे मोटे अनाज भी भरपेट नहीं मिलते थे, आज भगवान की कृपा से उन्हें इतना धन मिल गया कि दाख-जैसे मेवे भी अच्छे नहीं लगते।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुदामा-चरित (पृष्ठ 56)
    • संपादक : मोहनलाल 'रत्नाकार'
    • रचनाकार : नरोत्तमदास
    • प्रकाशन : ऋषभरचण जैन एवं सन्तति, नई दिल्ली-2

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