सुणजो ग्यान गोष्ठी री बातां

sunjo gyan goshthi ri batan

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव

सुणजो ग्यान गोष्ठी री बातां

बाबा रामदेव

और अधिकबाबा रामदेव

    सुणजो ग्यान गोष्ठी री बातां।

    ओर आरंम तो अनेकूं कर ली, उळटी आवै घातां॥

    बंधा पाळै बंधण में आवै, निरबंदी होय रहणा।

    सिमरथ नैं दोष नई कोई, निरभै रोप्या थाणा॥

    नीति-अनीति सही कर समझे, माया ब्रह्म पिछांणै।

    सिष्टी-मुष्टि दोनां सूं दूरा, इण विध अनुभव आंणै॥

    जीव यूं ब्रह्म आत्मा, यानै समझै माया।

    ग्यान जुगत सूं कारण जांण, कुण ब्रह्म कुण माया॥

    मन में मंत्र-तंत्र री सिद्धि, ग्यान हुओ कछु नांई।

    दोनूं भगति दिल रैवै, और करतब कहो कांई॥

    निरबंधण सोई निरंजण पावै, समदिष्ट होय रहणा।

    एको जाणै दुविधा कहो कांई, अनुभव अंदर लेणा॥

    मेटो भेद-अभेद कर लेणा, दुरमत दूर मिटाया।

    अनेक रीति और कर देखौ, है सब त्रिगुण माया॥

    नाम रूप सब माया दरसै, धरम-पाप कहो कांई।

    ऐड़ी भूल पड़ी निज मांही, सिमरथ गुरु समझाई॥

    करतब मिटियो कमाई पावै, तीरथ व्रत नई जाई।

    भागा ज्यांरा भरम-करम सब मिटिया, दोनूं करम मिटाई॥

    ग्यानी सिमरथ गुरु कर लीजौ, अधूरां नै गम नांई।

    बंधिया आप औरां नै बांधे, पूरा गुरु मुगति दिलाई॥

    भगति धरम अर करम-उपासना, तीनूं पद तांई कांई।

    अभय ग्यान चौथो पद पावै, सिद्ध रामदेव गाई॥

    रामदेव जी कहते हैं कि हे लोगो! ज्ञान-परामर्श का विचार सुनिए। ज्ञान-योग के अलावा किसी अन्य उपाय से कल्याण की अपेक्षा अहित ही होगा। धर्म, संप्रदाय एवं विविध प्रकार के पंथ आदि की सीमाओं में नहीं बंधना चाहिए। इन सभी से मुक्त रहना चाहिए। समस्त प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर स्वयं समर्थ हो जाओ। समर्थ को किसी प्रकार का दोष नहीं लगता। इसका आशय यह है कि ज्ञान प्राप्ति या ज्ञान मार्ग से समर्थ बनो अर्थात् ज्ञान-योगी बनो। नीति और अनीति का विवेक दृष्टि से भेद करके माया और ब्रह्म का भेद पहचानो और माया को छोड़कर ब्रह्म तत्त्व को आत्मसात करो। माया से मुक्त होकर सृष्टि और मुष्टि अर्थात् ब्रह्मांड और पिंड दोनों से असम्पृक्त होकर अपने आत्म-स्वरूप की अनुभूति करो। ब्रह्म (परमात्मा) तथा जीवात्मा का भेद मायाजनित है। ज्ञान बंधन का कारण ज्ञात करो, माया और ब्रह्म का भेद पहचानो। तंत्र-मंत्र आदि की सिद्धि से ज्ञान प्राप्ति नहीं हो सकती। इन दोनों साधनाओं से कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान नहीं हो सकता; द्वैतभाव और संशय को नष्ट करके ही एकत्व का अनुभव किया जा सकता है। जो किसी बंधन में नहीं बंधता, वही परमात्मा को पाता है। व्यक्ति को समदृष्टि होकर रहना चाहिए। अद्वैतावस्था को प्राप्त मनुष्य किसी दुविधा में नहीं फंसता। करो। अद्वैत का अनुभव ही ज्ञान है। नाम और रूप मायाजनित है, यहाँ तक कि धर्म और पाप संज्ञाएँ भी माया के कारण हैं। समर्थ गुरु ही यह समझ सकता है कि माया के कारण आत्मा कितनी बड़ी भ्रांति में पड़ी है। इस भ्रांति के दूर होते ही,आत्म-स्वरूप की प्राप्ति हो जाती है; तब उसके लिए तीर्थ-व्रत की आवश्यकता नहीं रहती। भागी लोगों के कर्तव्य-अकर्तव्य सब मिट जाते हैं और वह व्यक्ति कर्म-बंधन से मुक्त हो जाता है। समर्थ को ही सद्गुरु बनाओ, अज्ञानी व्यक्ति अपूर्ण है उसे गुरु मत बनाओ। वह तो स्वयं बंधनग्रस्त है; जो दूसरों को भी बंधन में डालेगा। रामदेवजी कहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति ही चरम लक्ष्य है; जो भक्ति, धर्म और कर्मोपासना इन तीनों से परे है। अर्थात् इनसे मोक्ष प्राप्ति नहीं हो सकती। केवल ज्ञान से ही अभय पद या मोक्ष प्राप्ति संभव है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 107)
    • संपादक : सोनाराम बिश्नोई
    • रचनाकार : बाबा रामदेव
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2015

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए