मानुख जन्म है सुफल अनंदा

manukh janm hai suphal ananda

दरिया (बिहार वाले)

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मानुख जन्म है सुफल अनंदा

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और अधिकदरिया (बिहार वाले)

    मानुख जन्म है सुफल अनंदा। जो जन परै ना जम के फंदा॥

    नाम बिना कस जीवन कहावै। जो नहिं गुर गमि ग्यान लखावै॥

    मस्तक मुकुता जाके होई। मस्त गयंद कहावै सोई॥

    ताके पारस सिर मुख लागा। भै नहिं निकट रहै उंह जागा॥

    बिनु मुकुता मस्तक है हीना। सो नर ऐसा सतगुर बीना॥

    मनुष्य-जन्म सफल और सुखदायक है यदि इसे पाकर हम ऐसा काम करें जिससे यम के फंदे में पड़े। यदि गुरु के पास जाकर नाम का ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो फिर कैसा जीवन? मस्त गजराज वही कहलाता है जिसके मस्तक में मुक्ता-मणि होती है। लोहे को सोना बनाने वाले पारस के समान नर से नारायण बनाने वाले सतगुरु के नाम को सिर पर धारण कर। जो मनुष्य उसका मुख से सुमिरन करता रहता है, उसके पास भय फटकने भी नहीं पाता। बिना सतगुरु के नाम के जीव तुच्छ है। जिसके भाग्य में सतगुरु का नाम नहीं, वह मनुष्य उस हाथी की तरह शोभाहीन है जिसके मस्तक पर मोती नहीं। उसे मुक्ति नहीं मिल सकती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 128)
    • संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
    • रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
    • संस्करण : 2016

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