सैन धन्ने ख़ूब करी सेवकाई

sain dhanne khoob kari sewakai

सैन भगत

सैन भगत

सैन धन्ने ख़ूब करी सेवकाई

सैन भगत

और अधिकसैन भगत

    सैन धन्ने ख़ूब करी सेवकाई।

    राछ-पीछ को थेलो टांग्यो, वाज्यो सेनो नाई॥

    दर-दर हाँक लगातो फिर्यौ, करन गयो सेवकाई।

    ठाकर-ठाकुर करे तुकारो, पीड़ा बरनि जाई॥

    राम नाम की ताड़ी लागी, नी पौच्यो सेवकाई।

    भेस बणा राम खुद पौंच्या, धन रे सेनो नाई॥

    राछ-पीछ सब परमा फैंक्या, राम नाम चितलाई।

    सैन भगत हिरदै पट खुल्या, सद्गुरु की करुनाई॥

    औजारों का थैला टाँगकर सैन ने ख़ूब सेवकाई की। सैन कहते हैं- मैं द्वार-द्वार आवाज़ लगाता फिरा और सेवकाई करता फिरा। लोगों ने अपमान से तुकारा देकर बुलाया। उस पीड़ा को व्यक्त करना कठिन है। राम नाम की ऐसी धुन लगी कि ठाकुर की सेवकाई में जाना भूल गया। मेरा मान बचाने के लिए स्वयं प्रभु मेरा रूप धारणकर के पहुँचे और राजा की सेवकाई निभाई। अरे सैन! तू धन्य हो गया। यह लीला ज्ञान होते ही सब औजार आदि फेंक दिए। राम नाम में चित्त स्थिर किया। हृदय के पट खुल गए। ऐसी कृपा सद्गुरू की हुई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत सैन भगत (पृष्ठ 293)
    • संपादक : अशोेक मिश्र
    • रचनाकार : संत सैन भगत
    • प्रकाशन : आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, मध्यप्रदेश
    • संस्करण : 2013

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