रैणि गवाई सोइ कै

raini gawai soi kai

गुरु नानक

गुरु नानक

रैणि गवाई सोइ कै

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    रैणि गवाई सोइ कै दिवस गवाइआ खाइ।

    हीरे जैसा जनमु है कउड़ी बदले जाइ।

    नामुन जानिआ राम का मूड़े फिरि पाछै पछुताहि रे॥ ॥रहाउ॥

    अनता धनु धरणी धरे अनत ने चाहिआ जाइ।

    अनत कउ चाहन जो गए से आए अनत गवाइ॥

    आपण लीआ जे मिलै तो सभु को भागठु होइ।

    करमा उपरि निबड़ै जे लोचै सभु कोइ॥

    नानक करणा जिनि की सोई सार करे।

    हुकमु ने जापी खसम का किसै वडाई देइ॥

    (मनुष्य) रात्रि सोने में गँवा देता है और दिन खाने-पीने में; (इस प्रकार) हीरा के समान (मनुष्य) जीवन (सांसारिक सुखों की) कौड़ी के बदले जा रहा है।

    (तू ने) राम का नाम नहीं जाना, अरे मूढ़, फिर पीछे पछताना पड़ेगा।

    (लोगों ने) अनंत धन पृथ्वी में (गाड़कर) रखा हैं, (किंतु) अनंत (परमात्मा की) इच्छा (उनके द्वारा) नहीं की जाती। जो अनंत (माया) की इच्छा धारण करके गए हैं, वे उस अनंत (परमात्मा) को गँवा कर लौट आए है।

    यदि अपने ही लेने से मिलने लगे, तो सभी भाग्यशाली हो जाएँ। सब कोई चाहे जो इच्छा करें, किंतु निपटारा होता है कर्मों के ऊपर ही।

    नानक कहते है कि जिस (प्रभु ने सृष्टि-रचना) की है, वही इसकी खोज-खबर करता है। स्वामी का हुक्म ज्ञात नहीं होता कि वह किसे बड़ाई प्रदान करेगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 178)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

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