ए मन त्यागि देहु गुमान

e man tyagi dehu guman

संत जगजीवन

संत जगजीवन

ए मन त्यागि देहु गुमान

संत जगजीवन

और अधिकसंत जगजीवन

    मन त्यागि देहु गुमान।

    वहाँ ते करि कौल आयहु, नाहिं समुझत ज्ञान॥

    छिया बिंदु का पहिरि जामा, हितं भयो हैवान।

    सुद्धि सोइ बिसारि दीन्हेव, कर्म आइ समान॥

    भूलु नहिं तकि देखु सुख परि, अचल नहिं अस्थान।

    जाइगा चल रहहि ना कोइ, बाल बूढ़ जवान॥

    सिद्ध साधं जती जोगी, करहिं एऊ पयान।

    अमर ते मरि जाइंगे चलि जाहिंगे ससि भान॥

    जाइगा चल रहहि ना कछु गहहु पद निर्बान।

    जगजीवन मति निर्मलं धरु, रहहु अंतरध्यान॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : जगजीवन साहब की बानी, पहला भाग (पृष्ठ 61)
    • रचनाकार : जगजीवन साहब
    • प्रकाशन : बेलवेडरी स्टीम प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1909

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए