दस बैरागनि मोहि बसि

das bairagani mohi basi

नामदेव

नामदेव

दस बैरागनि मोहि बसि

नामदेव

और अधिकनामदेव

    दस बैरागनि मोहि बसि कीनी पंचहु का मठनावऊ।।

    सतरि दोइ भरे अमृतसरी विखुकउ मारि कढ़ावऊ।।

    पाछे बहुरि आवनु पावऊ।।

    अंम्रित बाणी घट से उचरऊ आतम कऊ समझावऊ।।

    बजर कुठारु मोहि है छीना करि मिनंति लगि पावऊ।।

    संतन के हम उलटे सेवक भगतन से डरपावऊ।।

    ईह संसार ते तबही छूटऊ जऊ माइआ नह लपटावऊ।।

    भाइआ नामु गरभ जोनि का तिह तजि दरसन पावऊ।।

    इतुकरि भगति करहि जो जन तिन भउ सगल चुकाइए।

    कहत नामदेऊ बाहरि किआ भरमहु इह संजम हरि पाइए।।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 263)
    • रचनाकार : नामदेव
    • प्रकाशन : मोतीलाल बनारसी दास
    • संस्करण : 1963

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए