रळमिळ रेवौ हेत सूं हालो

rळmiळ rewau het soon halo

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव

रळमिळ रेवौ हेत सूं हालो

बाबा रामदेव

और अधिकबाबा रामदेव

    रळमिळ रेवौ हेत सूं हालो, कठिण पंथ है खांडै री धार।

    साचा जिकै नर रांम रंग राच्या, हरि भज उतरै परलै पार॥

    पहलां सबद सून्य मांहि होता, अलख निरंजण पूजा थाय।

    तीनूं देव नै माया सगती, परगट करया निरंजण राय॥

    मूंगा सबद सूंगा कर दीना, मथ इमरत कर नाख्यौ खार।

    हंसलां री होड करै नर बुगला, नीं पहुंचे वै परलै पार॥

    झीणी-झीणी चाल साध गत चालै, मन लालच रुळियांरां लार।

    मांयलै रौ मेल करयौ नीं अळगी, बिण करणी क्यूं बाजै साथ॥

    पांचू दौड़ करै रस भोग, मनवो भयौ मगन महाराज।

    भूल्यौ जाय गांव गम चूकै, लेखौ लेवै बाबो सिरजणहार॥

    पांचूं विषय वश कर राखै, सुरता करै सबद री लार।

    तज अभिमांन मेट देवै आपौ, जद बाजै परियाणी साध॥

    चेतन रेवौ चाल मत चूकौ, गुरु वचनां सूं करी वौहार।

    अजमल सुत रामदेव बोलै, सब में सायब है इकसार॥

    मिलजुल कर प्रेमपूर्वक चलो, भक्ति का मार्ग तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है। जो मनुष्य राम-नाम की भक्ति के रंग में रच-पच गए हैं, वे ही सच्चे भक्त हैं; ऐसे ही लोग भगवान् की भक्ति करते हुए भव सागर से पार होते हैं।

    निरंजन-निराकार अगोचर ईश्वर की साधना करो; जो सृष्टि पूर्व शब्दब्रह्म के रूप में शून्य में विद्यमान था। उसने ही माया तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश को प्रकट किया।

    इस ब्रह्मज्ञान के अमूल्य शब्द-रत्नों को अज्ञानी लोगों ने बहुत सस्ता कर दिया अर्थात् अर्थ का अनर्थ कर दिया। ज्ञान अमृत को बिगाड़ कर विष बना दिया। ऐसे अज्ञानी साधुओं का आचरण ऐसा ही है जैसे कि बगुले हंसों के साथ प्रतियोगिता कर रहे हों। ये पाखंडी भव सागर से पार नहीं हो सकते।

    ये पाखंडी सच्चे साधुओं के आचरण की नकल करते हैं तथा इनका मन चंचल और भोग-लिप्सा से भरा हुआ है, जो काम, क्रोध, मद, लोभ मोह के वशीभूत है। अपने घट का कलुष जिन्होंने दूर नहीं किया, ऐसे पाखंडियों को साधु कहना उपयुक्त नहीं है।

    जिनकी पाँचों इंद्रियाँ भोग-विलास के लिए दौड़ती हैं और मन भोग-लिप्सा में मुग्ध है, ये लोग अपने जीवन के सच्चे लक्ष्य को भूल गए हैं, इनके कर्मों का हिसाब सृजनकर्ता ईश्वर रखता है।

    जिन्होंने पांचों इंद्रियों को वश में कर लिया है और जिनका चित्त शब्द ब्रह्म में लीन हो गया है। जिन्होंने अपने अभिमान को नष्ट कर दिया है ऐसी स्थिति को प्राप्त करने वाले ही साधु कहलाते हैं।

    बहुत सावधानी से चलो,अपने आचरण से विचलित मत होओ तथा सद्गुरु के उपदेशानुसार शुद्ध आचरण रखो। अजमल पुत्र रामदेव कहते हैं कि ईश्वर समस्त प्राणियों में समत्व भाव से विद्यमान है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाबै की वांणी (पृष्ठ 120)
    • संपादक : सोनाराम बिश्नोई
    • रचनाकार : बाबा रामदेव
    • प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
    • संस्करण : 2015

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