या में कोई नहीं नर तेरो रे

ya mein koi nahin nar tero re

सगरामदास

सगरामदास

या में कोई नहीं नर तेरो रे

सगरामदास

और अधिकसगरामदास

    या में कोई नहीं नर तेरो रे।

    राम संत गुरुदेव बिना है, सब ही जगत अँधेरो रे॥

    हृदय देख विचार खोज कर, दे मन माहीं फेरो रे।

    आयो कौन चले कौन संगी, सहर सराय बसेरो रे॥

    मात-पिता-सुत-कुटुम-कबीलो, सब कह मेरो-मेरो रे।

    जब जम किंकर पास गहे गल, तहाँ नहीं कोइ तेरो रे॥

    धरिया रहे धाम धन सब ही, छिन में करो निबेरो रे।

    आयो ज्यूँ ही चले उठ रीतो, ले सके कछु डेरो रे॥

    मगन होय सब कर्म कमावे, संक नहीं हरि केरो रे।

    होय हिसाब, ज्वाब जब बूझै, वहाँ होय उबेरो रे॥

    निरपख न्याय सदा समता से, राव रंक सब केरो रे।

    जैसा करे तैसा भुगतावै, भुगत्यों होय निबेरो रे॥

    अबही चेत हेत कर हरि से, अजहूँ हरि पद नेरो रे।

    सतगुरु साध संगत जग माँहीं, भव तिरने को बेरो रे॥

    होय हुँसियार सिंवर ले साईं, मान कह्यो अब मेरो रे।

    'सेवगराम' कह-कह समझावै, परसराम को चेरो रे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 433)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : सगरामदास
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955

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