रेवंत गिरि रासु (तृतीय कडवम्)

rewant giri rasu (tritiy kaDwam)

विजयसेन सूरि

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रेवंत गिरि रासु (तृतीय कडवम्)

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    दिसि उत्तर कसमीर-देसु नेमिहि उम्माहिय,

    अजिउ रतन दुइ बंध गरुय संघाहिव आविय।

    सरसवसिण घण-कलस भरिवि तिन्हवणु करंतह,

    गलि लेवमु नेमि-बिंबु जलधार पडंतह

    संघाहिवु संघेण सहिउ निय मणि संतविउ,

    हा हा धिगु धिनु मह विंमलकुलगंजणु आविउ

    सामिय-सामल-धीर-चरण मह सरणि भवंतरि,

    इम परिहरि आहार नियम लइउ संघ-धुरंधरि

    एकवीसि उपवासि तासु अंबिक-दिवि आविय,

    पभणइ सपसन्न दवि जयजय सद्दाबिंय

    उट्टेविणु सिरि-नेमि-बिबूतुलिउ तुरंतउ,

    पच्छलु मन जोएसि बच्छ तुं भवणि वलंतउ॥

    णइवि अंवि कंचण-वसाणइ,

    सिरि नेमि बिंबु मणिमउ तहि आणइ॥

    पढमि-भवणि देहलिहि देउ छुडिपुडि आरोविउ,

    संघाविहि हरिसेण तम दिसि पच्छलु जोइउ॥४॥

    ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरि-नेमि-कुमारो,

    कुसुम-वुट्ठिमिल्हेव देवि किउ जइजकारो

    वइसाही-पुंनिमह पुंनवतिण जिणु थप्पिउ,

    पच्छिम दिसि निम्मविउ भवणुभव दुह तरुकप्पिउ॥५॥

    न्हवण-विलेवण-तणीय वंछ भवियण-जण पूरिय,

    संघाहिव सिरि-अजितु रतनु निय-देसिपराइय॥

    सयल विपत्ति कलि-कालि-काल-कलुसे जाणवि छाहिउ,

    झलहंलति मणि बिंब-कंत अंबि कुरुं आइय॥६॥

    समुद्दविजय-सिवदेवि-पुत्त जायव कुल-मंडणु जरासिंध-दल

    मलणु मयणु मयण-भड-माण-विहंडणु।

    राइमइ-मण हरणु रमणुसिव-रमणि मणोहरु,

    पुनवंत पणमंति नेमि-जिणु सनोहग-सुंदरु।

    वस्त पालि वरमंति भूयणु कारिउ रिसहेसरु;

    अट्ठावय-संमेयसिहर-वरमंडपु मणहरु॥७॥

    कउडि-जक्खु मरुदेवि दुह बितंगु पासाइउ,

    धम्मिय सिरु धूणंति देव वलिवि पलोइउ।

    तेजपालि निम्मवउ तत्थ तिहुयण-जण रंजणु

    कल्याणउ-तउ-तुंगु-भुयण लंघिउ-गयणंगणु।

    दीसइ दिसि दिसि कुंडि कुंडि नीझरण उमाला,

    इद्रमंडपु देपालि मंत्रि उद्धरिउ विसालो॥८॥

    अइरावण-गयराय-पाय-मुद्दा-समटंकिउ,

    दिठ्ठु गयंदमु कुंड विमलु निज्झर समलंकिउ।

    गउणगंग जं सयल-तित्थ-अवयारु भणिज्जइ,

    पक्खा लिवितहि अंगु दुक्ख जल-अंजलि दिज्जइ।

    सिंदुवार-मंदार-कुरबंक कुंदिहि सुंदरु;

    जाइ-जूह-सयवत्ति विन्निफलेहि निरंतरु॥९॥

    दिट्ठ छत्रसिल-कडणि अंववण सहसारामु,

    नेमि-जिणेसर-दिक्ख-नाण-निव्वाणहठामु॥१०॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदिकाल की प्रामाणिक रचनाएँ (पृष्ठ 42)
    • संपादक : गणपति चंद्र गुप्त
    • रचनाकार : विजयसेन सूरि
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हॉउस
    • संस्करण : 1976

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