विषयों का चिंतन अपने शरीर को पीड़ा देता है। जो विषय-चिंतन से सर्वथा मुक्त है, वह कभी दुःख का अनुभव नहीं करता। जैसे प्रज्वलित अग्नि में ईंधन डालने से उसका बल बहुत अधिक बढ़ जाता है, उसी प्रकार विषयभोग और धन का लाभ होने से मनुष्य की तृष्णा और अधिक बढ़ जाती है। घी से शांत न होने वाली प्रज्वलित अग्नि की भाँति मानव कभी विषय-भोग और धन से तृप्त नहीं होता।