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वेदव्यास के उद्धरण

मनुष्य की हृदयभूमि में मोह रूपी बीज से उत्पन्न हुआ एक विचित वृक्ष है जिसका नाम है काम। क्रोध और अभिमान उसके महान स्कंध हैं। कुछ करने की इच्छा उसमें जल सींचने का पात्र है। अज्ञान उसकी जड़ है, प्रमाद ही उसे सींचने वाला जल है, दूसरे के दोष देखना उस वृक्ष का पत्ता है तथा पूर्वजन्म के किए गए पाप उसके सार भाग है। शोक उसकी शाखा, मोह और चिंता डालियाँ एवं भय उसका अँकुर है। मोह में डालने वाली तृष्णा रूपी लताएँ उसमें लिपटी हुई है।

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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