दाईं ओर के दरवाज़े से एक पुरुष एक घर में दाख़िल होता है, जहाँ पर एक फ़ैमिली काउंसिल की मीटिंग चल रही है, वह आख़िरी वक्ता के आख़िरी शब्द सुनता है, उसे अपनी स्मृति में रखता है और बाईं ओर के दरवाज़े से निकलकर विश्व को उनका निर्णय सुना देता है। शब्द-निर्णय सच है, लेकिन अपने आपमें शून्य भी। अगर वे आख़िरी सत्य की मदद से कोई निर्णय लेना चाहते तो उन्हें उस कमरे में हमेशा के लिए रहना पड़ता, उस फ़ैमिली काउंसिल का हिस्सा होना पड़ता और अंततः वे कोई निर्णय ले पाने में अक्षम हो जाते। सिर्फ़ एक पक्ष ही निर्णय दे सकता है, लेकिन एक पक्ष के रूप में वह निर्णय नहीं दे सकता। जिसका तात्पर्य यह है कि इस विश्व में न्याय की कोई संभावना नहीं है, सिर्फ़ यत्र-तत्र उसकी चमक है।