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खुमान बंदीजन

चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि के दरबारी कवि। ब्रजभाषा में रचित वीरकाव्य 'लक्ष्मणशतक' के लिए स्मरणीय।

चरखारी (बुंदेलखंड) के महाराज विक्रमसाहि के दरबारी कवि। ब्रजभाषा में रचित वीरकाव्य 'लक्ष्मणशतक' के लिए स्मरणीय।

खुमान बंदीजन का परिचय

उपनाम : 'मान'

खुमान बंदीजन का उपनाम 'मान' था। बुंदेलखंड के अंतर्गत चरखारी राज्य के महाराज विक्रमसाहि इनके आश्रयदाता थे। ये छतरपुर राज्य के खरगवा ग्राम के निवासी बतलाये जाते हैं । खुमान कवि का कविता-काल 1773-1823 ई. माना जा सकता है। एक जनश्रुति के अनुसार ये जन्मांध थे। एक संन्यासी की कृपा से इन्हें कविता का बोध हुआ था। इन्होंने संस्कृत और हिन्दी दोनों में रचनाएँ की हैं।

'अमरप्रकाश' (अमरकोश का अनुवाद), 'अष्टयाम' (चरखारी नरेश विक्रमसाहि की प्रतिदिन की दिनचर्या का वर्णन), 'लक्ष्मणशतक' (लक्ष्मण-मेघनाद का युद्ध वर्णन), 'हनुमान नखशिख' (हनुमान का नखशिख), 'हनुमान पंचक' (हनुमान-स्तुति), 'हनुमान पचीसी' (हनुमान की स्तुति), 'नीतिविधान' (पृथ्वीसिंह का वर्णन), 'समरसार' (वीरकाव्य), 'नृसिंह चरित्र' (नृसिंह अवतार का वर्णन), 'और 'नृसिंह पचीसी' आदि ग्रंथ इनके नाम से प्रचलित रहे हैं।

'लक्ष्मण शतक' में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन बहुत ओजपूर्ण शैली में किया गया है। वास्तव में खुमान की कीर्ति का स्तंभ ग्रंथ 'लक्ष्मण शतक' ही है। इस ग्रंथ में ओजस्विनी शब्दावली प्रयुक्त हुई है।खुमान ने अपनी रचनाओं में साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। इन्हें अनुप्रास अलंकार से विशेष लगाव था। संपूर्ण साहित्य के आधार पर भक्ति तथा वीर-काव्यधारा दोनों में खुमान बंदीजन का एक विशिष्ट स्थान है।

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