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दरिया (बिहार वाले)

1634 - 1780 | धरकंधा, बिहार

मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।

मुक्ति पंथ के प्रवर्तक। स्वयं को कबीर का अवतार घोषित करने वाले निर्गुण संत-कवि।

दरिया (बिहार वाले) की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 14

भक्ति करे सो सूरमा, तन मन लज्जा खोय।

छैल चिकनिया बिसनी, वा से भक्ति ना होय॥

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प्रेम ज्ञान जब उपजे, चले जगत कंह झारी।

कहे दरिया सतगुरु मिले, पारख करे सुधारी॥

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माला टोपी भेष नहीं, नहीं सोना शृंगार।

सदा भाव सतसंग है, जो कोई गहे करार॥

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सुरति निरति नेता हुआ, मटुकी हुआ शरीर।

दया दधि विचारिये, निकलत घृत तब थीर॥

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जब लगि विरह उपजे, हिये उपजे प्रेम।

तब लगि हाथ आवहिं धरम किये व्रत नेम॥

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सबद 29

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