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अज्ञेय

1911 - 1987 | कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

समादृत कवि-कथाकार-अनुवादक और संपादक। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।

समादृत कवि-कथाकार-अनुवादक और संपादक। भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित।

अज्ञेय का परिचय

उपनाम : 'अज्ञेय'

मूल नाम : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

जन्म : 07/03/1911 | कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

निधन : 04/04/1987 | नई दिल्ली, दिल्ली

पुरस्कार : भारतीय ज्ञानपीठ

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया (आधुनिक कुशीनगर) में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई जहाँ उन्हें संस्कृत, फ़ारसी, अँग्रेज़ी और बांग्ला भाषा और साहित्य की शिक्षा दी गई। हिंदी साहित्य में उनकी प्रतिष्ठा एक बहुमुखी प्रतिभासंपन्न कवि, संपादक, ललित-निबंधकार और उपन्यासकार के रूप में है। इसके साथ ही उन्होंने अपने यात्रा वृतांत, अनुवाद, आलोचना, संस्मरण, डायरी, विचार-गद्य एवं नाटक से भी हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। 

स्नातकोत्तर की शिक्षा के दौरान उनका सक्रिय संपर्क क्रांतिकारी गतिविधियों से हुआ। वर्ष 1930 में उन्हें पहली बार गिरफ़्तार किया गया और 1930-36 की अवधि उन्होंने विभिन्न कारावासों में गुज़ारी। कारावास में रहकर उन्होंने छायावाद, मनोविज्ञान, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, विधि आदि विषयों का अध्ययन किया और अपनी कुछ प्रमुख कृतियों का सृजन किया।

उनके ‘अज्ञेय’ उपनाम के पीछे की रोचक कथा यह है कि दिल्ली जेल में लिखी अपनी ‘साढ़े सात कहानियाँ’ उन्होंने प्रकाशन के उद्देश्य से जैनेंद कुमार को भिजवाई। जैनेंद्र कुमार द्वारा प्रेमचंद को भेजी गई इन कहानियों में से दो राजनीतिक कहानियाँ प्रेमचंद द्वारा स्वीकार कर ली गई। चूँकि कारावास से भेजी गई इन कहानियों के लेखक का नाम उजागर करना उपयुक्त नहीं था, निर्णय लिया गया कि लेखक की नाम की जगह ‘अज्ञेय’ (अर्थात अज्ञात) नाम का उपयोग किया जाए। अज्ञेय ने बाद में एक बार बताया था कि उन्हें अपना यह उपनाम पसंद नहीं था, हालाँकि उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया था। वह कविताओं और कहानियों जैसी रचित कृति का प्रकाशन ‘अज्ञेय’ नाम से कराते रहे, जबकि लेख, विचार, आलोचना आदि के प्रकाशन के लिए उन्होंने अपने मूल नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का उपयोग किया। 

अज्ञेय को कविता में ‘प्रयोगवाद’ का प्रवर्तक कहा जाता है। उनके संपादन में निकले ‘तार सप्तक’ और ‘दूसरा सप्तक’ की प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों को देखते हुए इसे एक नई धारा के रूप में चिह्नित किया गया। इसे पूर्व की काव्य प्रवृत्तियों ‘छायावाद’ और ‘प्रगतिवाद’ की प्रतिक्रिया में व्युत्पन्न माना गया है। अज्ञेय को ‘नई कविता’ धारा का भी पथ-प्रदर्शक माना जाता है। उनके संपादन में प्रकाशित ‘दूसरा सप्तक’ और ‘तीसरा सप्तक’ के कवि नई कविता के प्रमुख कवियों में शामिल हैं। 

प्रमुख कृतियाँ

कविता-संग्रह : भग्नदूत (1933), चिंता (1942), इत्यलम् (1946), हरी घास पर क्षण भर (1949), बावरा अहेरी (1954), इन्द्रधनुष रौंदे हुये ये (1957), अरी ओ करुणा प्रभामय (1959), आँगन के पार द्वार (1961), कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1970), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1974), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक पर छाया (1981), प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स (अंग्रेज़ी,1946) आदि।

कहानी-संग्रह : विपथगा (1937), परंपरा (1944), कोठरी की बात (1945), शरणार्थी (1948), जयदोल (1951) आदि।

उपन्यास : शेखर एक जीवनी (दो भाग, क्रमशः 1941, 1944), नदी के द्वीप (1951), अपने अपने अजनबी (1961)।

यात्रा वृतांत : अरे यायावर रहेगा याद? (1943), एक बूँद सहसा उछली (1960)।

निबंध-संग्रह : सबरंग, त्रिशंकु, आत्मनेपद, आधुनिक साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल।

आलोचना : त्रिशंकु (1945), आत्मनेपद (1960), अद्यतन (1971)।

संस्मरण : स्मृति लेखा।

डायरी : भवंती, अंतरा और शाश्वती।

विचार गद्य : संवत्‍सर।

नाटक : उत्तरप्रियदर्शी।

संपादन : आधुनिक हिंदी साहित्य (निबंध संग्रह) (1942), तार सप्तक (कविता संग्रह) (1943), दूसरा सप्तक (कविता संग्रह) (1951), तीसरा सप्तक (कविता संग्रह) (1959), नए एकांकी (1952), रूपांबरा (1960) एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ।

कृष्णदत्त पालीवाल के संपादन में ‘अज्ञेय रचनावली’ के 18 खंडों में उनकी सभी रचनाओं को संकलित करने का प्रयास किया गया है। 

अज्ञेय को ‘आँगन के पार द्वार’ के लिए वर्ष 1964 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार और ‘कितनी नावों में कितनी बार’ के लिए वर्ष 1978 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।  

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