रूपरसिक मोहन मनोज

ruparsik mohan manoj

नारायण स्वामी

नारायण स्वामी

रूपरसिक मोहन मनोज

नारायण स्वामी

और अधिकनारायण स्वामी

    रूपरसिक मोहन मनोज मन-हरन सकल गुन-गरबीले।

    छैलछबीले, चपल लोचन-चकोर चित्त-चटकीले॥

    रतन-जटित सिर मुकुट लटक रहि, सिमट स्याम लट घुंघरारी।

    बालबिहारी, कन्हैयालाल, चतुर तेरी बलिहारी॥

    लोलक मोती काम कपोलनि झलक बनी निर्मल प्यारी।

    जोति उज्यारी, हमैं हरबार दरस दै गिरिधारी॥

    बिज्जु-घटासी दंत छटा मुख देखि सरद-ससि सरमीले।

    छैलछबीले, चपल लोचन-चकोर चित्त-चटकीले॥

    झँगुली झीन जरीपट कछनी, स्यामल गात सुहात भले।

    चाल निराली, चरन कोमल पंकज के पात भले॥

    पग-नूपुर-झनकार, परम उत्तम जसुमति के तात भले।

    संग सखन के, निकट जमुन-तट गोबछरान चरात भले॥

    ब्रजजुवतिन के प्रेम-भोग में घर-घर माखन-गटकीले।

    छैलछबीले, चपल लोचन-चकोर चित्त-चटकीले॥

    गावैं बागबिलास, चरित हरि सरद-रैन रसरास करैं।

    मुनिजन मोहैं, कृष्ण-कंसादिक-खल-दल नास करैं॥

    गिरिधारी महाराज सदा श्रीब्रज बृंदावन-वास करैं।

    हरि-चरित्र को, स्रवन सुनि-सुनि करि मन अभिलाष करैं॥

    हाथ जोरकै करैं बीनती 'नारायण' दिल-दरदीले।

    छैलछबीले, चपल लोचन-चकोर चित्त-चटकीले॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : ब्रजमाधुरी सार (पृष्ठ 264)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : नारायणस्वामी
    • प्रकाशन : हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग

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