नाथ बोले अमृतबाणीं

nath bole amritbanin

गोरखनाथ

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नाथ बोले अमृतबाणीं

गोरखनाथ

और अधिकगोरखनाथ

    नाथ बोले अमृतबाणीं।

    बरसैगी कंबली भीजैगा पाणीं॥

    गाडि पडरवा बाँधिलै खूँटा।

    चलै दमामा बाजिलै ऊँटा॥

    कउवा की डाली पीपल बासौ।

    मूसा के सबद बिलइया नासै॥

    चले बटावा की बाट।

    सोवै डुकरिया ठौरै खाट॥

    ढूकिले कूकर भूकिले चोर।

    काढै धणीं पुकारै ढोर॥

    ऊजड़ खेड़ा नगर मझारी।

    तलि गागर ऊपर पणिहारी॥

    मगरी परि चूल्हा धुँधाई।

    पोवणहारी को रोटी खाइ॥

    कामिनी जलै अंगीठी तापै।

    बिचि बैसंदर थरहर काँपै॥

    एक जु रढिया रढती आई।

    बहू बिवाई सासू जाई॥

    नगरी कौ पांणी कूवै आवै।

    उलटी चर्चा गोरख गावै॥

    नाथ अमृतवाणी बोलता है तो कंबल बरसता है और जल भीगता है (जब अनहद शब्द सुनाई देता है तो शरीर अमृतरस बरसाता है जिससे आत्मा आनंदित होती है। कटड़े को गाड़ देते हैं और खूँटे को बाँध देते हैं (माया समाप्त हो जाती है और मन संयमित हो जाता है)। दमामा चलता है और ऊँट बजता है (श्वास चलता रहता है और शरीर में ध्वनि सुनाई देती रहती है)। कौआ डाली बन जाता है और पीपल उस पर बैठता है (काल के स्थान पर परब्रह्म की स्थिति होती है)। चूहे की आवाज़ सुनकर बिल्ली भाग जाती है (मन को ज्ञान होने से कुबुद्धि दूर होती है)। यात्री चलता है परंतु मार्ग थक जाता है। (जीव रूपी यात्री साधना पथ में आगे बढ़ता है और भवसागर रूपी मार्ग समाप्त हो जाता है)। बुढ़िया पर खाट सोती है, (आत्मा) में पंच ज्ञानेद्रियाँ और मन विश्राम लेते हैं। कुत्ता छिपता है और चोर भौंकता है (मन शांत हो जाता है और संसार में शोर चलता रहता है)। मालिक निकलता है और पशु पुकारता है (ईश्वर दूर हो जाता है ओर माया पुकारती रहती है)। नगर है, परंतु उजड़ स्थान बन गया है (शरीर में माया के गुण नहीं रहते, वह उजड़ी बस्ती के समान सूना हो गया है)। गागर नीचे है ओर पनिहारी ऊपर है (सांसारिकता नीचे रह जाती है और आत्मा सहस्रार में ऊपर पहुँच जाती है) लकड़ी पड़ी है, परंतु चूल्हा जल रहा है (माया निष्क्रिय रहती है और चित्त के संस्कार जल जाते हैं)। रोटी पोने वाली को रोटी खा रही है (कुमति को प्रभु का स्मरण खा रहा है)। नारी जल रही है और अंगीठी ताप सेंक रही है (कामनाएँ जल रही है और आत्मा ब्रह्माग्नि का ताप अनुभव कर रही है)। बीच में वैश्वानर थर−थर काँप रही है (इस ब्रह्माग्नि में विकार नष्ट हो रहे हैं)। एक हठी नारी हठ करती आई तो बहू ने सास को जन्म दिया (आत्मा ने जब प्रभु का स्मरण किया तो बुद्धि ने सुरति को जन्म दिया)। नगरी का जल कुएँ में रहा है (शरीर सहस्रकमल तक पहुँच गया है।) इस प्रकार गोरख उल्टी चर्चा गा रहा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : श्री गोरख गीत (पृष्ठ 85)
    • रचनाकार : गोरखनाथ
    • प्रकाशन : laxmi prakashan

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