गोविंद के गुण क्यों नहिं गावो

gowind ke gun kyon nahin gawo

सहजोबाई

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गोविंद के गुण क्यों नहिं गावो

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    गोविंद के गुण क्यों नहिं गावो।

    ममता नींद कहा मन सूतो जागि हरिसूं चितलावो॥

    गुणगावत बहु पतित उधारे ऊँची पदवी दीन्हीं।

    जाति करण सूँऊपर कीन्हें आधि वयाधि विपदा हर लीन्ही॥

    भवजल पार भये धिरहूए आवगमन नशायो।

    वैसी ही तुम्हारी गति होगी करि जप औसर नीकोपायो॥

    आधी रात और तरुण अवस्था उठकरि ध्यान लगावै।

    ताकी स्तुति शेष करत है शिव ब्रह्मादिक शीश नवावै।

    चरणहि दास नवोपद सेवो गुरु उपदेश सम्हारो।

    सहजो नौधाभक्ति करीजै आप तिरो औरन को तारो॥

    सहजोबाई कहती हैं कि अरे मानव! तुम परमात्मा के गुण क्यों नहीं गाते हो? तुम ममता, माया-मोह की नींद में क्यों सोये हुए हो? तुम अपने मन को जगाओ और भगवान की भक्ति में अपना चित्त लगाओ। भक्तिपूर्वक गुणगान करने वाले अनेक पतितों का प्रभु ने उद्वार किया है और उन्हें ऊँचा स्थान दिया है, उन्हें जाति एवं वर्ण से ऊपर उठाया है और भगवान ने उनकी आधि, व्याधि एवं विपदा को नष्ट किया है। वे इस संसार-सागर से पार हुए, आवागमन या जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर परम धाम में स्थिर हो गए। इसलिए तुम्हें भी वैसी ही श्रेष्ठ गाति या परम पद प्राप्त होगा। अतः इस उचित अवसर के अनुसार प्रयास करो, अच्छे मौक़े का लाभ उठाओ। इस तरुण अवस्था में आधी रात में उठकर प्रभु का ध्यान करो, आलस्य त्याग कर प्रभु की भक्ति करो। परमेश्वर की स्तुति शेषनाग करता है; शिवजी, ब्रह्मा आदि देवता भी उन्हें सिर नवाते हैं। उनके चरणों के दास बनकर उनकी सेवा करो और गुरुजी चरणदास के उपदेशों से अपना जीवन सँवारो। सहजो कहती हैं कि प्रभु की नवधा भक्ति कीजिए, इससे अपना भी उद्धार कीजिए तथा औरों को भी पार उतारिए, अर्थात् भक्ति-भावना द्वारा सभी का उद्धार कीजिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सहजप्रकाश (पृष्ठ 109)
    • रचनाकार : सहजोबाई
    • प्रकाशन : श्रीवेंकटेश्वर स्टीम् प्रेस, बंबई
    • संस्करण : 1922

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