तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे

toko piiv milai.nge ghuu.nghaT ke paT khol re

कबीर

कबीर

तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे

कबीर

और अधिककबीर

    तोको पीव मिलैंगे घूँघट के पट खोल रे।

    घट घट में वही साँई रमता, कटुक बचन मत बोल रे।

    धन जोबन को गरब कीजै, झूठा पँचरंग चोल रे।

    सुन्न महल में दियना बार ले, आसा सों मत डोल रे।

    जोग जुगत से रंग-महल में, पिय पाई अनमोल रे।

    कहैं कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥

    तुमको प्रीतम मिलेंगे, अपने घूँघट के पट खोल दे। हर शरीर में वही एक मालिक आबाद है। किसी के लिए कड़वा बोल क्यों बोलता है। धन और यौवन पर अभिमान मत कर क्योंकि यह पाँच रंग का चोला झूठा है। शून्य के महल में चिराग़ जला और उम्मीद का दामन हाथ से मत छोड़। अपने योग के जतन से तुझे रंगमहल में अनमोल प्रीतम मिलेगा। कबीर कहते हैं कि अनहद का साज़ बज रहा है और चारों ओर आनंद ही आनंद है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 106)
    • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
    • संस्करण : 2010

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