पद-83

pad 83

 

अभी कहाँ मानुष बन पाया
गढ़ने वाला कहाँ चाक को अंतिम बार घुमाया
कितने साँचे बने और टूटी कितनी छवि-छाया
हुई कहाँ चुंबन की इति या इति प्रवेश परकाया
रति का अहका1 जस का जैसा, कामदेव छुछुवाया2
अहं का कुत्ता हर ऊँचे पर पिछली टाँग उठाया
मिली कहाँ वह ख़ुशी कि जिसमें सद्यजात शिशु गाए
रुकी कहाँ वेदना प्रसव की कि कुतिया मुस्काए
अभी कहाँ आवर्त सारणी हुई तत्व की पूरी
पड़ी अधूरी जाने कितनी कहाँ-कहाँ की दूरी
कितनी टूट चुकीं तलवारें कितने फूल खिले
जल में जल की तरह कहाँ दो लोग अभेद मिले
अभी झुकेंगी डालें कितनी कितने पेड़ तनेंगे
आने वाले कल में कितने दर्पण अभी बनेंगे
मन का मानुष बनने में कितने हो गए सफ़ाया
एक अदद यह अष्टभुजा भी इसी दौर में आया।

स्रोत :
  • रचनाकार : अष्टभुजा शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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