मथुरा के रचनाकार

कुल: 12

रीतिसिद्ध कवि। ‘सतसई’ से चर्चित। कल्पना की मधुरता, अलंकार योजना और सुंदर भाव-व्यंजना के लिए स्मरणीय।

रसखान

1548 - 1628

कृष्ण-भक्त कवि। भावों की सरस अभिव्यक्ति के लिए ‘रस की खान’ कहे गए। सवैयों के लिए स्मरणीय।

कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। कुंभनदास के पुत्र और गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य।

कृष्णभक्त परंपरा के सुकवि और निपुण संगीतज्ञ। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य।

किशनगढ़ (राजस्थान) नरेश। प्रेम, भक्ति और वैराग्य की साथ नखशिख की सरस रचनाओं के लिए ख्यात।

रीतिकाल के सरस-सहृदय आचार्य कवि। कविता की विषयवस्तु भक्ति और रीति। रीतिग्रंथ परंपरा में काव्य-दोषों के वर्णन के लिए समादृत नाम।

रसिक और संगीत प्रेमी भक्त कवि। 'हरिदासी संप्रदाय' से संबद्ध।

रीतिकाल और आधुनिककाल के संधि कवि। कृष्ण-भक्ति के पद पुरानी परिपाटी में लिखे। पदों में रूपक और उपमाओं की सुंदर प्रयोग।

रीतिकालीन कृष्ण भक्त कवि।

रीतिकालीन कृष्णभक्त कवि।

'टट्टी संप्रदाय' के अष्टाचार्यों में से अंतिम। रसरीति के कुशल व्याख्याता एवं वैराग्य के धनी।

भारतेंदु युगीन कवि। पुरानी परिपाटी के लेखन में सक्रिय होने के साथ-साथ भाषा की नवीन गति के प्रवर्तन में भी भागीदार।

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