मथुरा के रचनाकार

कुल: 12

प्रतिष्ठित कवि।

कृष्णभक्त परंपरा के सुकवि और निपुण संगीतज्ञ। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य।

ग्वाल

1802 - 1867

रीतिबद्ध कवि। सोलह भाषाओं के ज्ञाता। देशाटन से अर्जित ज्ञान और अनुभव इनकी कविता में स्पष्ट देखा जा सकता है। विदग्ध और फक्कड़ कवि।

कृष्णभक्त कवि। पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय के अष्टछाप कवियों में से एक। गोस्वामी वल्लभदास के शिष्य। मधुर भाव की भक्ति के लिए स्मरणीय।

सुपरिचित कवि-लेखक। वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए उल्लेखनीय। 'ज़िल्लत की रोटी' शीर्षक से एकमात्र कविता-संग्रह प्रकाशित।

रीतिकाल के आचार्य कवियों में से एक। भरतपुर नरेश प्रतापसिंह के आश्रित। भावुक, सहृदय और विषय को स्पष्ट करने में कुशल कवि।

कृष्णोपासक कवि। चतुष् ध्रुपद-शैली के रचयिता और तानसेन के संगीत गुरु। सखी संप्रदाय के प्रवर्तक।

वल्लभ संप्रदाय से संबद्ध। कृष्ण-भक्ति के सरस पदों के लिए ख्यात। साहित्येतिहास ग्रंथों में प्रायः उपेक्षित।

भरतपुर नरेश सुजानसिंह के आश्रित कवि। काव्य में वर्णन-विस्तार और शब्दनाद के लिए स्मरणीय।

अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ के कवि।

रीतिकाल और आधुनिककाल के संधि कवि। कृष्ण-भक्ति के पद पुरानी परिपाटी में लिखे। पदों में रूपक और उपमाओं की सुंदर प्रयोग।

भारतेंदु युगीन कवि। पुरानी परिपाटी के लेखन में सक्रिय होने के साथ-साथ भाषा की नवीन गति के प्रवर्तन में भी भागीदार।

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