धुन आनै जो गगन की सो

dhun aanai jo gagan ki so

पलटू

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धुन आनै जो गगन की सो

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    धुन आनै जो गगन की सो मेरा गुरुदेव॥

    सो मेरा गुरुदेव सेवा मैं करिहौं वाकी।

    सब्द में है गलतान अवस्था ऐसी जाकी॥

    निस दिन दसा अरूढ़ लगै ना भूख पियासा।

    ज्ञान भूमि के बीच चलत है उलटी स्वासा॥

    तुरिया सेती अतीत सोधि फिर सहज समाधी।

    भजन तेल की धार साधना निर्मल साधी॥

    पलटू तन मन वारिये मिलै जो ऐसा कोउ।

    धुन आनै जो गगन की सो मेरा गुरुदेव॥

    गगन गुफा में उठते हुए अनाहत नाद की जो साधना करता है, वह मेरा गुरुदेव है। मैं उसकी सेवा करूँगा। अनाहत नाद सुनने में जो लीन है, जिसकी उसमें तदगत अवस्था है, वह उसी में रात-दिन दृढ़ रहता है। उसे भूख-प्यास मिटाने की चिंता नहीं रहती। जो आत्मज्ञान की भूमिका में ठहरकर श्वास का अनुलोम-विलोम-रेचक-पूरक करके प्राणायाम करता है और ब्रह्मज्ञान की तुर्यगा अवस्था को भी शोधकर उसके ऊपर स्वरूप-स्थिति की सहज समाधि में स्थित हो गया और इस साधना में निरंतरता ऐसी हुई कि तेल-धारावत अटूट निर्मल दशा की स्थिति हो गई। पलटू साहेब कहते हैं कि यदि ऐसा कोई समाधि-लीन संत मिल जाए, तो उसके चरणों में अपना तन-मन निछावर कर दीजिए। जो गगनगुफा की ध्वनि में लीन है वह मेरा गुरुदेव है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 9)
    • संपादक : अभिलाषा दास
    • रचनाकार : पलटू
    • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
    • संस्करण : 2012

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