वारै तें न पलक लगत बिनु साँवरे ते

warai ten na palak lagat binu sanware te

आलम

आलम

वारै तें न पलक लगत बिनु साँवरे ते

आलम

और अधिकआलम

    वारै तें पलक लगत बिनु साँवरे ते,

    बावरै अजान ऊधौ भले उपदेस हैं।

    तादिन ते बन सूनो घरु है दहत दूनो,

    तारनि में ज्योति नहीं जटा भये केस हैं।

    ‘आलम’ बिहात छिन जानो जात कोटि दिन,

    कौन रैन की समाई सुरति नैस हैं।

    हम हू ते स्याम दूरि स्याम हू ते हम दूरि,

    वै तो आछे काछे स्याम सखी मैले भेस हैं॥

    गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव! कृष्ण के बिना क्षण-भर के लिए भी हमारी पलकें बंद नहीं हुई हैं। हम हरदम जागती रहती हैं। हमें तुम्हारे उपदेश भी बावले अज्ञान से भरे लगते हैं। जब से कृष्ण गए हैं तब से सारा वृंदावन सूना-सूना लगता है और घर में रहने पर हमें दुगुना संताप होता है। रोते-रोते आँखों की पुतलियाँ कमज़ोर हो गई हैं तथा बालों की सँभाल करने के कारण वे जटा की भाँति उलझ कर रूखे हो गए हैं। प्रियतम की प्रतीक्षा में एक-एक क्षण करोड़ों दिन जितना लंबा प्रतीत होता है और रात की तो बात की क्या कहें? हमें अपनी सुध-बुध ही नहीं रहती। कृष्ण हमसे दूर हैं, और हम कृष्ण से दूर हैं फिर भी कृष्ण तो वहाँ अच्छी प्रकार रह रहे हैं, परंतु यहाँ तो विरह-व्यथा के कारण हमारे शरीर की कांति क्षीण हो गई है और वस्त्र म्लान हो गए हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम ग्रंथावली (पृष्ठ 77)
    • संपादक : विद्यानिवास मिश्र
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए