भाैन के दरस पुन्य भौन मेरे नेरे आयो

bhain ke daras punny bhaun mere nere aayo

आलम

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भाैन के दरस पुन्य भौन मेरे नेरे आयो

आलम

और अधिकआलम

    भाैन के दरस पुन्य भौन मेरे नेरे आयो,

    छत्र-छाँह परसत छत्रनि सों छयो हौं।

    मंगला के मंगल ते मंगल अनेग भये,

    हिंगलाज राखी लाज याहि काज नयो हौं।

    सेषमति ‘सेख’ ही सुसेष की सी दीनी तुम,

    रावरे सिखाये सिख ढिग आनि लयो हौं।

    दुर्गा देवी तेरेई दया ते दुर्ग लाँघि आयो,

    पारबती तुम्हैं सुमिरत पार भयो हौं॥

    शैलजा के दिव्य धाम को देखकर ऐसा अनुभूत हुआ कि पृथ्वी का धाम मेरे नज़दीक गया है। देवी के स्वर्ण छत्र की छाया-मात्र के स्पर्श से ऐसा लगता है कि मुझ पर उनकी रक्षा की छाया गई हो। मंगलकारिणी पार्वती के भले दर्शन से अनेक मांगलिक कार्य संपन्न हो गए हों, ऐसा प्रतीत होता है। मेरे हृदय में जो मनोकामना थी उसकी लज्जा आपने रख दी है इसलिए मैं तुम्हें नमन करता हूँ। तुमने मेरी प्यारी शेख़ को श्रेष्ठ बुद्धि दी है। तुम्हारे सिखाने से तुम्हारे पास तक ले आया हूँ। कवि आलम कहते हैं कि हे दुर्गा देवी! आपकी इस दया से समस्त कठिनाइयों को पार कर आया हूँ। हे पार्वती! तुम्हारे स्मरण करने से मैं इस शेख़ के साथ इस संसार से पार जा सकता हूँ। आपकी अनुकंपा अपूर्व है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम ग्रंथावली (पृष्ठ 92)
    • संपादक : विद्यानिवास मिश्र
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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