सहगल का हारमोनियम

sahgal ka harmonium

यतींद्र मिश्र

यतींद्र मिश्र

सहगल का हारमोनियम

यतींद्र मिश्र

और अधिकयतींद्र मिश्र

     

    एक

    उस पर बंदिशें टँकी हैं ऐसे
    जैसे आकाश के इमाम-ज़ामिन पर चाँद-सितारे
    उसकी धौंकनी को हल्के से दबाने पर
    परदों से सटकर गुज़रती हुई हवा
    लगता है जालंधर के पंज-पीर चौक से उठकर आई है
    हारमोनियम के स्वर को परदे को हवा को नम बनाती हुई

    पता नहीं उसे जालंधर से मँगवाया गया
    या कलकत्ता के दास-ब्रदर्स ने चुनकर
    अपनी दुकान से सहगल के पास भिजवाया
    यह भी मुमकिन है कि डलहौजी स्क्वॉयर कलकत्ता के 
    डवारकीन एंड संस ने इसे सहगल के लिए
    बड़े मन से बनाया हो
    और परदों तक जाने वाली आवाज़ को
    उतरी हुई गांधार से सजाया हो

    सहगल तक आते-आते
    न जाने किन लोगों की उँगलियों के निशान
    उसकी सफ़ेद और काली वाली रीड पर पड़कर
    मंद्र और तार को बेवजह ही छेड़ चुके हैं
    जैसे कभी कविता के दीवट में
    अर्थ की बाती रखते हुए कविजन
    अनजाने ही आग का सम्मोहन रच डालते हैं

    वह एक तारीख़ का सरमाया है
    एक समय तो डूबती उदास शामों का ठिकाना
    एक हद तक ज़िंदगी से होड़ लेती लय का रहगुज़र
    और न जाने कितनी बनी-अधबनी धुनों का माशूक़

    एक पहेली से ज़्यादा अब वो रवायत का मामला है
    पुरानी फ़िल्मों और बहुत पुराने संगीत की रोशनी में
    किसी सधे हुए जर्मन या पेरिस रीड वाले हारमोनियम की तरह
    हर संभव जतन से सुरीला बजता हुआ
    आज भी जिसकी वही पुरानी गूँज
    इतिहास में उतने ही नएपन से सुनी जा सकती है। 

    दो

    दुःख के गीतों को इस पर रहल की शक्ल में पढ़ा गया
    रागों के लिए जालंधर, मुरादाबाद, कानपुर
    और दिल्ली होते हुए इसमें कई शहरों के पते दर्ज हुए
    शिमला में कड़ाके की ठंड पड़ती थी जब
    कुछ अलग ढंग से पहाड़ी के सुर चढ़ते थे इस पर

    नाटकों के वक़्त गाते हुए 
    पारसी मालिकों और मराठी नाट्यकर्मियों के बीच
    या कि पुराने दौर के फ़िल्मी गीतों में 
    परेशानी के रंग और लिबास में डूबे हुए किरदारों में
    कई दफ़ा क़ैद हुए कुछ दर्द-भरे लम्हे

    वैसे तो यह एक हारमोनियम भर है
    कुंदनलाल सहगल के रियाज़ का
    पेटी-बाजा की साधारण-सी दुनिया से अलग
    एक गवैए के जुनून का रहगुज़र

    हवा धौंकनी रीड परदे और जालंधर के बहाने
    आवाज़ में मींड और मुरकियों के हलफ़नामे पर...

    स्रोत :
    • रचनाकार : यतींद्र मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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