यमराज की दिशा

yamraj ki disha

चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले

यमराज की दिशा

चंद्रकांत देवताले

और अधिकचंद्रकांत देवताले

    माँ की ईश्वर से मुलाक़ात हुई या नहीं

    कहना मुश्किल है

    पर वह जताती थी जैसे

    ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है

    और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार

    ज़िंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने के

    रास्ते ख़ोज लेती है

    माँ ने एक बार मुझसे कहा था

    दक्षिम की तरफ़ पैर करके मत सोना

    वह मृत्यु की दिशा है

    और यमराज को क्रुद्ध करना

    बुद्धिमानी की बात नहीं

    तब मैं छोटा था

    और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था

    उसने बताया था

    तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दूर दक्षिण में

    माँ की समझाइश के बाद

    दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया

    और इससे इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ

    दक्षिण दिशा पहचानने में

    मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा

    मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया

    और मुझे हमेशा माँ याद आई

    दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था

    होता छोर तक पहुँच पाना

    तो यमराज का घर देख लेता

    पर आज जिधर भी पैर करके सोओ

    वहीं दक्षिण दिशा हो जाती है

    सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं

    और वे सभी में एक साथ

    अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं

    माँ अब नहीं है

    और यमराज की दिशा भी वह नहीं रही

    जो माँ जानती थी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 154)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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