यहाँ नहीं कहीं और : सात दिसंबर 1992
yahan nahin kahin aur ha sat december 1992
एक
कहना दोधी से कम न दे दूध नहीं जा सकती इंदौर
कर दूँगा फ़ोन दफ़्तर से मीरा को अनु को
तुम नहीं जा सकती इंदौर अब
मैसेज भेजा लक्ष्मी को मत करो चिंता
नहीं आएगी स्टेशन मरे हैं चार दिल्ली में कर्फ्यू भी है
एक पत्थर और समय अक्ष पर पत्थर गिरे गुंबदों से
समय अक्ष बन रहा अविराम समूह पत्थरों का।
दो
सभी हिंदुओं को बधाई
सिखों, मुसलमानों, ईसाइयों, यहूदियों, दुनिया के
तमाम मज़हबियों को बधाई
बधाई दे रहा विलुप्त होती जाति का बचा फूल
हँस रहा रो रहा अनपढ़ भूखा जंगली गँवार।
तीन
पहली बार पतिता शादी जब की अब्राह्मण से
अब तो रही कहीं की नहीं तू तो राम-विरोधी
कहेगी क्या फिर विसर्जन हो गंगा में ही
निकाल फ़्रेम से उसे जो चिपकाई लेनिन की तस्वीर मैंने
मैं कहता झूठा सूरज झूठा सूरज झूठा सूरज रोती तू
अब तू तो कहती रही ग़लत है झगड़ा लिखा दीवारों पर
निश्चित तू धर्मभ्रष्टा
ओ माँ!
चार
पुरुषोत्तम!
सभी नहीं हिंदू यहाँ रो रही मेरी माँ आ बाहर आ
कुत्ता मरा पड़ा घर के बाहर पाँच दिनों से
ओवरसीयर नहीं देता शिकायत-पुस्तिका
ला तू ही ला लिख दूँ सड़ती लाशें गली-गली
कुछ कर हे ईश्वर!
पाँच
सड़ती लाशें गली-गली
नहीं यहाँ नहीं कहीं और
फ़िलहाल दुनिया की सबसे शांत धड़कन है यहाँ
फ़िलहाल।
- रचनाकार : लाल्टू
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.