याददाश्त का मारा हुआ

yadadasht ka mara hua

चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले

याददाश्त का मारा हुआ

चंद्रकांत देवताले

और अधिकचंद्रकांत देवताले

    जो मेरी परवाह करते हैं

    मेरा ख़ून पीते और मांस नोचते हैं

    जो मेरे कोई नहीं

    उनसे मदद मिलती है मुझे जीने में

    कुछ का ख़्याल है वो नहीं होते

    तो मैं दर-दर भटकता बिलबिलाता

    तरसता टुकड़ों के लिए

    अब उन्हें कैसे समझाऊँ

    उनकी परवाह मौत का फंदा है मेरे लिए

    मैं कोढ़ियों के साथ रह लूँगा मज़े में

    मुझे नहीं चाहिए तेज़ाब की तरह बरसती उनकी मेहरबानी

    हर धंधे में कमाता है कोई कोई

    यह एक ही तो धंधा है आपसी का

    जिसमें किसी को भी फ़ायदा नहीं होता

    आमादा ही हैं एहसान करने पर हमदर्द

    तो बेहतर हैं वो मुझे भुला दे शुरू से आख़िर तक

    मैं याददाश्त का मारा हुआ हूँ

    अब और सताया जाना नहीं चाहता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 193)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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